SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 367
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३३२ नवतत्त्वसंग्रहः ७. सागारी० जिसकी नजर लगे दोष हूइ तो अध जीमे उठके ओर जगे जायके जीमे पिण तिसकी दृष्टि आगे न जीमे अथवा साधुकूं भोजन करतां गृहस्थ देखता होइ तो तिहाथी अन्यत्र जाइ जीमे तो भंग नही होइ ८. आउट्टण० - हाथ, पग आदि संकोचे पसारे तो भंग नही, वात आदि कारणात् ९. गुरुअभु० - गुरुकूं आवता देखके जो खड़ा होवे तो भंग नही १०. पारिट्ठा०विधिसे लीया विधिसे जीम्या इम करतां जे विगय प्रमुख आहार ऊगर्या ते परिठावणिया गुरुनी आज्ञाये लेवे तो भंग नहीं. ११ . लेवालेवे ० - जे विगय त्याग्य है तिणे करी कडछी आदिक खरडी हूइ तिण कडछी करी आहार आदिक दीइ ते लेता व्रत भंग नही होइ १२. गिहत्थसं० - गृहस्थे आपणे काजे उ(ओ)दन दूधे (धसे) अथवा दही करी उल्या हूइ तिहा जे धान्य उपरि चार आंगुल चडिउ दूध दही हूइ ते निवीये कल्पे, जो पांच अंगुल तो विग (य) ही जाननी. ए आचाम्ल ताइ कल्पे १३. ए आगार साधुने. उखित्तवि० - गाढी विगय गुड पकवान आदिक पोली ऊपरि मूकी हुइ ते उपाडी दूर करी ते पोली आचाम्ल ताइ कल्पे १४. ए आगार साधुने. पडुच्चमक्खि० - सर्वथा रूषा मंडक आदिकने राख दूर करनेकू हाथ फेरे मंडा फेरे १५. पच्चक्खाण तिविहार करे तदा पाणीके छ आगार पाणस्स लेवेण वा अलेवेण वा अच्छेण वा वहलेण वा ससित्थेण वा असित्थेण वा वोसरामि. अस्य अर्थ - पाण० जिस करी भाजन आदि खरडाइ ते खर्जुर आदिकनउ पाणी लेपकृत १ . अलेवे० अलेप पाणी कांजिका प्रमुख २. अच्छे ० अच्छा निर्मल तत्ता पाणी ३. वहलेण० वहल डोहलउ तंदुल धोवल प्रमुख ४. ससित्थे० सीथ सहित उसामण आदि ५. असित्थे० सीथ रहित पाणी ६, ए ६ पाणी लेवे तो भंग नही. पच्चक्खाण करणेवाला वोसरामि कहै, गुरु करावणेवाला वोसरइ कहै. श्रावककूं आचामल नीवीमे पाणी भोजन अचित्त करे, सचित्त न करे, अने श्रावकने आचामल नीवीमे तीन आहारका त्याग जानना. नमोकारसीमे अने रात्रिभोजनमे साधुके च्यार ही आहारका त्याग निश्चै करी होय है, शेष पच्चक्खाण तिविहार चौविहार होय है. रात्रिभोजन १ पोरसि २ दोपहीरी ३ एकासमे श्रावक दो आहार, तीन आहार, चार आहारका त्याग होवे है. ए सर्व पच्चक्खाणका भेद जानना. अथ च्यार आहारका स्वरूप लिख्यते - प्रथम अशनके भेद-शालि, ज्वारि, वरठी प्रमुख सर्व ओदन १, मूंग आदि सर्व दाल २, सत्तू आदि सर्व आटा ३, पेठ आदि सर्व तीमण ४, मोदक आदि सर्व पकवान ५, सूरण आदि सर्व कंद ६, मंडक आदि सर्व तली वस्तु ७, वेसण ८, विराहली ९, आमला १०, सैंधव ११, कउठपत्र १२, लींबुपत्र १३, लूण १४, हींग १५, ए सर्व अशनका भेद जानना. १. पाण० पाणी कांजिक १, जव २, कयर ३, ककोडा आदिकनो धोवण ४, अवर सर्व शास्त्रोक्त धोवण ५, ए सर्व पाणी, साकरपाणी १ आंबिलपाणी इक्षु रसप्रमुख सर्व सरस पाणी. ए पाणीमे गिण्या पिण व्यवहारे अशन ही है. २.
SR No.022331
Book TitleNavtattva Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri, Sanyamkirtivijay
PublisherSamyagyan Pracharak Samiti
Publication Year2013
Total Pages546
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy