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नवतत्त्वसंग्रहः
(११८) १५ भेद पाण विना द्वार दूजा आगार संख्या नमो- पोर-| साढ पुरिम., अपा- विग-| निवी- आ- एका- बेआ-| एक- अभकार | सी | पोर-| ४ | र्द्ध ५ / या | याता | चा-| सणा | सणा | लठासहि-| २ | सी
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अणत्थणाभोगे | अ० अ० अ० अ० अ० अ० अ० अ० अ० अ० अ० सहसागारेणं | स० स० स० स० स० स० स० स० स० | पच्छन्नकालेणं
| प० प० प० ० ० ० ० ० दिसामोहेणं | ० दि० दि० दि० दि० ० ० ० ० ० ० साहुवयणेणं
| 0 | सा० | सा० | सा० सा० ० ० ० ० ० ० आकुंचनपसा० | • • • • • • • • आ० आ० •••• गुरुअब्भुट्ठा० सागारियागा० | 0 0 0 0 0 • सा० सा० सा० ० ० पारिद्धावणिया | 0 0 0 0 0 पा० पा० पा० पा० | पा० | पा० पा० ० ०
नेवणं । . . . . . . | ले ले ..... उक्खितविवेगे
उ० उ० उ० ० ० ० गिहत्थसंसटे
गि० गि० | गि० पडुच्चमक्खिये | | | | | प० | प० 0 0 0 0 0 0 0
महत्तरागारे | ० ० ० म० | म० | म० | म०म० म० म० म०म० म० म० सव्वसमाहिव० | 0 | स० स० | स० स० | स० स० | स० स० स० स० | स० | स० स० आगारसंख्या | २ | ६ | ६ | ७ | ७ | ९ | ९ | ८ | ८ | ८ | ७ | ५ | ४ | ४
अथ आगार-अर्थ लिख्यते-अणत्थ० अत्यंत भूल गया, पच्चक्खाण करके भोजन मुखमे दीया पीछे पच्चक्खाण संभार्यो तदा तत्काल थूक देवे तो भंग नही १. सहसा० गाय आदि दोहना मुखमें छींट पडे, बलात्कारे मुखमे पडे पूर्ववत् थूके २. पच्छन्नकाल० सूर्य वादलसे ढक्यो पूरी पोरसीकी बुद्धिसे पारे पीछे सूर्य देख्या तो पोरसी नही हूइ तदा मुखके कवलकू राषमे यत्नसे थूके, पूरी हूइ पोरसी तदा फेर जीमे तो भंग नही इम सर्व जगे जानना. ३. दिसामो० पूर्व दिस(श) पश्चिम जाणे तदा पारे पीछे खबर पडे पूर्वोक्तवत् थूके ४. सा० साधुके वचनथी पोरसी जाणी जीमे पीछे जाण्या पोरसी नही आइ पूर्वोक्त० ५. महत्तरा० अति मोटा काम संघ गुरुकी आज्ञासे जीमे तो भंग नही, ग्लान आदिकनी वैयावृत्त्य करणी ते विना खाया होइ नही, इस वास्ते भोजन करे तो भंग नही ६. सव्वसमाहि० प्रत्याख्यान कर्या है अने तीव्र शूल आदि उपना अथवा सर्प आदि डस्यो तदा आर्तध्याने मरे तो अच्छा नही इस वास्ते औषधी करे भंग नही
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