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सरागी
सरागी
स्थित,
वत्
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नवतत्त्वसंग्रहः (११२) अथ ३६ द्वार यंत्रमे वर्णन करीये है१ प्रज्ञापन १ पुलाक २ बकुश | ३ प्रतिसेवना | ४ कषाय- | निर्ग्रन्थ | स्नातक
कुशील २ वेद पुरुष, नपुंसक, । स्त्री, पुरुष, | बकुशवत् बकुशवत् उपशांतवेद, क्षीणकृत्रिम पिण नपुंसक
अथवा | क्षीणवेद | वेद जन्मनपुंसक कृत्रिम
क्षीणवेद उपनही इति वृत्तौ
शांतवेदे भवेत् ३राग सरागी
सरागी
उपशांत | क्षीण
क्षीण ४कल्प
स्थित, अस्थित, बकुशवत् स्थित, अस्थित, स्थित, | निर्ग्रन्थअस्थित, जिनकल्प,
जिनकल्प, अस्थित, स्थविर 'स्थविर
स्थिवर, कल्पातीत
कल्पातीत ५ चारित्र सामायिक, सामायिक, | सामायिक, आद्य चार | यथाख्यात| यथाछेदोपस्था- छेदोपस्थाप- | छेदोपस्थाप
ख्यात पनीय ६ प्रति- मूल गुण, उत्तर गुण पुलाकवत् | अप्रतिसेवी | अप्रतिसेवी| अप्रतिसेवना उत्तर गुण
सेवी ७ज्ञान
२ वा ३ प्रवचन, | २ वा ३ प्रव- | बकुशवत् २ वा ३ वा । कषाय- केवल प्रवचन ज० ८, उ० | चन, ज०८,
४ प्रवचन, | कुशीलवत् नवमे पूर्वकी | उ० १० पूर्व
ज०८, उ०
व्यति३ वस्तु
१४ पूर्व
रिक्त तीर्थमे
तीर्थमे तीर्थमे कषाय- कषायकु
अतीर्थमे वा | कुशीलवत् शीलवत् ९ लिंग | द्रव्ये ३ भावे
स्वलिंग १० शरीर | ___३ औ, तै, | ४ औ, वै, । ४ औ, वै, | पांच |३ औ, तै, | ३ औ, तै, का | तै, का
| का | तै, का ११ क्षेत्र | जन्म कर्मभूमि | जन्म कर्म०
| व | म संहरण नही | संहरण कर्मभू०
अकर्म० भू १. क्षीणवेदमां अथवा उपशांतवेदमां होय ।
नीय
नीय
८ तीर्थ
तीर्थमे