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असंख्य
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नवतत्त्वसंग्रहः सातमी नरकके अकाशके तले अर्थात् नीचे दोय प्रतर आपसमे सदृश अने सात राज (रज्जु) के लंबे चौडे है. तिसके ऊपर एक प्रदेश हीन दोय प्रतर है. तिनके ऊपर एक प्रदेश हीन चार प्रतर सरीषे है. तिनके ऊपर एक प्रदेश हीन दोय प्रतर सरीषे है, तिन के ऊपर एक प्रदेश हीन दो प्रतर है. ऐसे ही १ प्रदेश हीन फेर दोय प्रतर है. एक प्रदेश हीन फेर दोय प्रतर है. एवं सर्व १४ प्रतर चढेसे बारा प्रदेशकी हान होइ, इसी तरे चबदे प्रतर चढे फेर बारा प्रदेश घटे. ऐसी सात रज्जु ताइ चवदे प्रतर चढे बारे घटालेने अने ऊर्ध्व लोकमे सात प्रदेश चढ चारकी हान जाननी. चारकी आदिमे वृद्धि उपर हान जाणवी अने जे दूजी तरफ दो आदिकके अंक लिखे है सो प्रतरके प्रदेशांकी संख्याके कृतयुग्म अने द्वापरयुग्म ज्ञेयं. इति अलम्.
(८३) लोकश्रेणि
अलोकश्रेणि ऊंची | तिरछी |
तिरछी
ऊंची संख्य, असंख्य, अनंत | द्रव्यार्थे
| असंख्य अनंत
अनंत संख्य, असंख्य, अनंत | प्रदेशाार्थे
असंख्य अनंत सं., असं. युग्म ४
द्रव्यार्थे संख्य, असंख्य| कृतयुग्म कृतयुग्म कृतयुग्म युग्म ४
कृतयुग्म | ४ ४।३।२।१ ४।३।२।१ चतुर्भंगी श्रेणि अपेक्षा ___४२ सादि सांत अण अप अण अप
सादि सांत
अण स३ अण स
सा अप ३ | स अप स सप ४ (८४) श्रीभगवती दशमे शते प्रथम उद्देशके दस दिग् स्वरूपयंत्रम् इन्द्रा | अग्नि | यमा | नैऋत्य | वरुणा | वायव्य |
तमा | विमला पूर्व दिग् | कूण | दक्षिण | कूण | पश्चिम | कूण उत्तर | अधो | ऊर्ध्व दिग् उद्भव | रुचकसे
→ | ए | व | म् | - उत्पत्ति संस्थान | जूया | मुक्तावल | जूया | मुक्ता० जूया | मुक्ता० जूया | मुक्ता० | गोस्तन | गोस्तन लोक देश| एक | बहु | १ | बहु | १ | बहु | १ | बहु | १ । १
दशमे आयाम | ३|| रज्जु
ए | व | म् । ३।। रज्जु] ३॥ रज्जु | ३॥ रज्जु | ७ झझेरी | प्रदेश ऊन लंबी | २|| रज्जु
| २॥ रज्जु| २॥ रज्जु | २॥ रज्जु सात राज
॥ रज्जु | ॥ रज्जु | ॥ रज्जु द्रव्यार्थे | सर्व
स्तोक १ प्रदेशार्थ | असंख्य | असंख्य | असंख्य | असंख्य | असंख्य | असंख्य | असंख्य | असंख्य | विशेष | असंख्य
गुणी ५ | ४ | ५ | ४ | ५ | ४ | ५ | ४ | ३ | २
सोमा