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२२ (३५) संघयणस्वरूपम् (३६) षट् संस्थानस्वरूप यंत्रं स्थानांगात् (३७) १४ बोलकी उत्पाद (उत्पात) भगवती (श०१, उ०२, सू० २५)(कोष्टक-२६) (३८) कालादेशेन सप्रदेशी अप्रदेशी (कोष्टक-२७) (३९) आहारी अणाहारिक (कोष्टक-२८) (४०) चरम अचरम यंत्र भगवती श० १८, उ० १, सू० ६१६ (कोष्टक-२९). . (४१) पढम अपढम यंत्रम् भगवती श०१८, उ० १, सू०६१६ (कोष्टक-३०) (४२) भगवती श० २६, उ० १ (सू० ८२४)(कोष्टक-३१) (४३) गति आदि में ज्ञान-अज्ञान, भगवती श०८,उ०२,(सू०३१९-३२१)(कोष्टक-३२) ८६ (४४) (द्रव्यादि अपेक्षा से ज्ञान का विषय
भगवती श०८, उ० २, सू० ३२२)(कोष्टक-३३) (४५) अंतरद्वार जीवाभिगम प्रति०९, उ०२, सू०२६७ (कोष्टक-३४) (४६) अल्पबहुत्वद्वार प्रज्ञापना प० ३, सू०६८ (कोष्टक-३५) (४७) छतापद द्वार वीसे भेदे यंत्र (कोष्टक-३६) (४८) संज्ञीश्रुतस्वरूपयंत्रम् (कोष्टक-३७)
१०२ (४९) असंज्ञीश्रुतस्वरूपयंत्रम् (कोष्टक-३८)
१०२ (५०) कोष्टक-३९
१०४ (५१) श्रुतज्ञान लेनेकी विधि लिख्यते (कोष्टक-४०)
१०६ (५२) सात प्रकारे शास्त्र सुननेकी विधियंत्रम् ( कोष्टक-४१)
१०६ (५३) प्रथम अवधिज्ञानना नामद्वारमे नामादि छ प्रकारे स्थापनासार्थकयंत्रम् (कोष्टक-४२ (५४) अवधिज्ञान आश्रयी क्षेत्रनी वृद्धिये कितना काल वधइ अने कालनी वृद्धिये कितना क्षेत्र वधे ते यंत्रात् (कोष्टक-४३)
११० (५५) द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव एह चारोमे वृद्धि हुइ कौनसेकी वृद्धि हुइ
अने कौनसे की न हुइ ते यंत्रम् (कोष्टक-४४) (५६) वर्गणा स्वरूप (५७) द्रव्यकी वृद्धि हूया क्षेत्र, काल कितना वधे ए वात कहीये है. यंत्रसे इसका स्वरूप (कोष्टक-४५)
११८ (५८) परमावधिनो धणी कितना क्षेत्र जाणे अने कितना काल
जाणे ए वात कहीये है. यंत्रम् (कोष्टक-४६) (५९) भवप्रत्यय नारकी देवताना अवधिमे प्रथम नारकीना
अवधि क्षेत्र यंत्र लिख्यते (कोष्टक-४७) (६०) आय आश्रयी अवधिज्ञान कितना होवे है ते यंत्रात जेयम (कोष्टक-४८)
१२० (६१) (कोष्टक-४९) (६२) (कोष्टक-५०) (६३) नारक आदिका अवधिका संस्थान (कोष्टक-५१)
१२२ (६४) अवस्थित द्वार पांचमा कहीये है (कोष्टक-५२)
१२४ (६५) यंत्रसे स्वरूप हान अने वृद्धिका जानना (कोष्टक-५३)
१२४ (६६) ऐ छ प्रकारमे अवधिज्ञाननी वृद्धि हान कितने प्रकारे है ते यंत्रमे स्वरूप लिख्या (कोष्टक-५४)
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