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________________ १८८ नवतत्त्वसंग्रहः मोहनीयके दश बंधस्थान, तत्र २२ नो बंध किम् ? २८ माहेथी ६ काटे-सम्यक्त्वमोहनीय १, मिश्रमोहनीय १, वेद २, हास्ययुगल २ अथवा अरतियुगल २, इनमे (से) एक युगल लीजे, एवं ६ टली. २१ के बंधे मिथ्यात्व १ टली. १७ ने बंधे प्रथम चौकडी ४ टली. १३ ने बंधे दूजे चौकडी ४ टली. ९ ने बंधस्थाने तीजी चौकडी ४ टली. ५ ने बंधे ४ टली-हास्य १, रति १, भय १, जुगुप्सा १, एवं ४. नवमेके पहिले भागे ५ बांधे, दूजे भागमे पुरुषवेद टला, तीजे भागे संज्वलनक्रोध टला, चौथे भागे संज्वलनमान टला, पांचमे भागे माया टली. ४७ | मोहके उदय- | स्थान ९ w our om sa 03w 9 उदयस्थानमे पश्चानुपूर्वी समजना. दसमे एक संज्वलन लोभनो उदय. एवं एक स्थान. नवमे संज्वलना एक कोइ उदय, एवं १. जो चार जगे एकेकका अंक लिख्या सो चार तरे(ह) उदय-क्रोध १ वा मान १ वा माया १ वा लोभ १. दोके उदयमे एक कोइ वेद घालीये तो २. अपूर्वकरणे हास्य १, रति १, घाले ४ का उदय. भय प्रक्षेपे ५ का उदय, जुगुप्सा प्रक्षेपे ६ का उदय, सातमे तथा छठे प्रत्याख्यानीया कोइ एक घाले सातका उदय, पांचमे अप्रत्याख्यानीया कोइ एक घाले ८ नो उदय, अविरति मिश्र गुणस्थाने अनंतानुबंधी एक कोइ घाले ९ नो उदय. मिथ्यात्वगुणस्थाने एक मिथ्यात्व घाले १० का उदय. एवं उदयस्थान नव. ___ अथ सुगमताके वास्ते फिर लिखीये है-मिथ्यात्वगुणस्थानमे चार उदयस्थान. प्रथम सातका उदय-मिथ्यात्व १, कोइ अप्रत्याख्यान चारोंमें १, कोइ प्रत्याख्यान १, कोइ संज्वलन १. कोइ किस वास्ते? एक चौकडीना क्रोध आदि वेदातां सघलाइ क्रोध वेदे क्रोध, एवं मान आदि वेदे मान, जातके सदृशपणे करी तीन वेद माहे एक कोइ वेद १, हास्य १, रति १ वा शोक १, अरति १ इनमे एक युगल लीजे, एवं ७. आठके उदयमे भय वा जुगुप्सा, अथवा अनंतानुबंधी चारमे(से) एक इन तीनो माहेथी एक, सात पूर्वली, एवं ८. नवके उदयमे अनंतानुबंधी १, भय १ लीजे, अथवा अनंतानुबंधी १ जुगुप्सा १ लीजे, अथवा भय १, जुगुप्सा १ लीजे, एवं ९. दशमे तीनो-अनंतानुबंधी १, भय १, जुगुप्सा १, ए तीनो सातमे घाले. दूजेमे सातका उदयमे चारों चौकडीका स्वजातीया एकेक, एवं ४, हास्य १, रति १, शोक १, अरति १, इनमेसु एक जुगल २, एक कोइ वेद १, एवं ७. आठमे भय १ वा जुगुप्सा १ घाले ८. भय १, जुगुप्सा १ दोनो घाले ९. एवं मिश्रे जानना. चौथे गुणस्थाने ६ नो उदय उपशमसम्यक्त्व वा वा क्षायिक सम्यक्त्वना धणीने है. अप्रत्याख्यान १, प्रत्याख्यान १, संज्वलन १, इनमेसूं एकेक
SR No.022331
Book TitleNavtattva Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri, Sanyamkirtivijay
PublisherSamyagyan Pracharak Samiti
Publication Year2013
Total Pages546
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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