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पंच गुण आगति तिर्यं मनु- देवगति स्थिति रूप देव
विकु
नाम
भव्य - तिर्यं - सातो युगल युग
वर्जी ल
शेष वर्जी
सर्व
शेष
२५
आवे
सर्व देवलो
माहे -
कादि
थी सर्वदेव
आवे
to te to or
द्रव्य - च, नर
देव मनु- कका
१ ष्य, आवे
देवता
होणे
टे
न चक्र- प्रथम
व
र वर्ती नरक
थी
आवे
२
४
(७२) भगवती श० १२, उ०९ ( सू० ४६१-४६६), पंच देव
वाला
5 10 10 10 5
नर- च ष्य कथी गति गति
भा
धर्म - साधु पहि- तेज, युग
देव
३
व
टे व
देवा - ती पहिधिदे-र्थं
ली
व क तीन
र
५
चार
प्रका
रना
देवता
पांच
नरक -
थी
आवे
ली वायु ल
युगल वर्जी
नही
नरक
थी
आवे
o
०
वर्जा ने शेष
शेष
सर्व
आवे आवे
o
o
एकें - संमूद्री ५, च्छिम
विग- मनुष्य लेंदी वर्जी
सर्वार्थ- ज० अंत - ज०
सिद्धि
वर्जी
३ शेष
वर्जी सर्वशेष थी आवे आवे
सर्व
देव
तानो
आव्यो
प्रमुख
सर्व ४
देवथी
आवे
वैमानिक ज०अंत
र्मुहूर्त,
३० तीन
मुहूर्त, १,२,३ तके उ० देवअसं-तामे
पल्यो
पम
ज० सात
सो वर्ष
o
उ० ८४ ३.
लक्ष पू
र्वनी
उ० देश
ऊन पूर्व
कोटि
ख्य "एकस्मिन्
ज०
११२श
उ०
अ
सं.
""
वैमा निकी वर्ष, उ० तो है,
८४ लक्ष परंतु पूर्वनी विकुर्वे नही
काल संतिष्ठन करी काय
कहां स्थिति जावे
४ जा - ज० अंत- ज० दश हजार
मुहूर्त,
उ० तीन वर्ष, अंतपल्यो
पम
ज० दस ज०
१.२.
भोग
न
त्यागे
तो
उ०
नरक
मे
ज० ७२ शक्ति-मुक्ति
वैमा
निक
मे
तथा
. मोक्षे
मे
जावे
ज० ७००
वर्ष, उ०
८४ लक्ष
पूर्व
ज० १ समय,
उ० देश
ऊन पूर्व
कोटि
ज० ७२
वर्ष, उ०
८४ लक्ष
पूर्वं
पृथ्वी ज० दस
अप् हजार वन- वर्ष, उ०
हजार वर्ष, उ० ३३ सा
,
अ
स्पति ३३ सागरोपम संख्य गर्भज गरोपम
तिर्यंच
서요.
अं अल्प
बहुत्व
त
र
उ० वनस्पतिकाल
मुहूर्त
ख्या
अधिक, त
ज० १
सागर
झझेरा,
उ० देश
ऊन अर्ध
पुद्गल
नवतत्त्वसंग्रहः
पम, उ०
देश ऊन
अर्ध
पुद्गल
०
ज०
अंत
४
अ
सं
ज० पृथ
३
क् पल्यो- संख्या
मुहूर्त,
उ० वनस्पति
काल
गु
णा
१
सर्व
स्तोक
의연구
त
गुणा
५ अ
सं
अव
गाह
ना
ख्या
त
ज० अं
गुल
असंख्य
भाग,
उ०
हजार
योजनकी
गु
णा
ज० ७
धनुष्यकी,
उ० ५००
धनु
ष्यकी
२
ज० ७ सं- हस्तकी
ज० १ हाथ झझेरी,
ख्यात उ० ५०० गुणा
उ० ५००
धनुष्य
धनुष्यकी
ज० १
हस्तकी
उ० ७
हाथ,
उत्तर
वैक्रिय
लाख
योजन
३,
मनुष्यमे
जोगायाओ वि०, वीरियायाओ वि उवयोगदवियदंसणायाओ तिन्नि वि तुलाओ वि०" - भगवती सू० ४६७ ।
१. एकमां ।