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दूजा
तीजा
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नवतत्त्वसंग्रहः (६४) वर्गके छेदांका स्वरूप निरूपक यंत्रम्वर्ग
प्रथम अंक ___ ४
२५६ छेद स्थापना स्थापना स्थापना
स्थापना __०
१ २, ८ ,४,२,१ । १२८,६४,३२,१६,८,४,२,१ ।। अथ लोकोत्तर गिणती लिख्यतेचौपाइ-लोकोत्तर गिणती सिद्धांत, जासौ संख असंख अनंत ।
ताके भेद दोइ मन मानि, छेद गिणतओ वरग प्रमानि ॥१॥ छेद राशिका आधा आधा, जब लग अंतमे एक ही लाधा ।
राशिकू आपही सौ गुणाकार, 'वरग' कहे इह बुद्धिविचार ॥२॥ दोहा-धारा तीन ही जानीये, वरगधार घनधार ।
होइ घनघनाधार इम, पंडित कहे विचार ॥१॥ (६५) अथ इन तीनो धारका जो प्रयोजन है सो यंत्रं गोमट्ट म्मट)सारात् वर्गशलाका
वर्गधारा
छेदशलाका
४
mo ||
६४
१२८
२५६
संख्याते संख्याते असंख्याते असंख्याते असंख्याते असंख्याते असंख्याते
२५६ ६५५३६
४२९४९६७२९६ १८४४६७४४०७३७०९५५१६१६
३९ अंक आवै
७८ अंक आवै संख्याते वर्ग जाइये तब जघन्य परित्त असंख्याते आवै
संख्याते वर्ग जाइये तब जघन्य युक्त असंख्याते आवै असंख्याते वर्ग जाइये तब जघन्य असंख्य असंख्याते आवै असंख्याते वर्ग जाइये तब सूक्ष्म अद्धापल्योपमके समय होय ____ असंख्य वर्ग जाइये तब सूची अंगुलके प्रदेश
१ 'विरीया वर्ग कीजे तब प्रतर अंगुलके प्रदेश असंख्य वर्ग जाइये तब जघन्य परित्त अनंत होय
संख्याते संख्याते असंख्याते असंख्याते असंख्याते असंख्याते असंख्याते
१. वार।