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________________ १०८ नवतत्त्वसंग्रहः अथ अवधिज्ञानस्वरूप कथ्यते–अवधिना भेद असंख्य, अनंत है. ते सर्वका स्वरूप नाही लिख्या जावे है, इस वास्ते चौदे भेदे अवधिज्ञाननउ निक्षेप कहीए स्थापना कहुं हुं (?) अने पंदरवे द्वारे ऋद्धिप्राप्त कहीए लब्धिवंत, तिस वास्ते कितनीक लब्धिना स्वरूप कहसुं. अवधिना चौदे द्वारका नाम यंत्रसे जानना १ अवधि-अवधिज्ञानना प्रथम द्वारे नाम आदिक भेद कथन करियेंगे. २ क्षेत्रपरिमाणअवधिज्ञानका क्षेत्रपरिमाण कथना. ३ संस्थान-अवधिज्ञानका संस्थान-आकारविशेष कहना. ४ अनुगामी-अनुगामी एक अवधि लोचननी परे धणीके साथ जावे ते 'अनुगामी' अने जे धणीके साथ न जावे ते 'अननुगामी' तेहना स्वरूप. ५ अवस्थित-जैसा अवधि उपज्या है तितना ही रहै, वधे घटे नही ते 'अवस्थित.' ६ चल-वधे घटे परिणामविशेषे ते 'चल' अवधि कहीये. ७ तीव्र मंद-कितनाका अवधि चोखा ते 'तीव्र', डोहलारूप ते 'मंद' कहीये. ८ प्रतिपाति-अवधिनो उपजणो विणसनो ते 'प्रतिपाति'. ९ ज्ञान-ज्ञानद्वारे वखाणवो. १० दर्शन-दर्शनद्वारे वखाणवो. ११ विभंग-मिथ्यात्वीका अवधिज्ञान ते 'विभंग.' १२ देश-अवधि देश थकी उपजे अने सर्व थकी उपजे. १३ क्षेत्र-क्षेत्र विषे संबद्ध असंबद्ध विचाले अंतर हूइ ते. १४ गति-गइइंदिकाये मतिज्ञानवत् वीस द्वारे. १५ ऋद्धिप्राप्त-लब्धिका स्वरूप. एह सामान्य प्रकारे द्वारनामार्थकथनम्. (४२) अथ प्रथम अवधिज्ञानना नामद्वारमे नामादि छ प्रकारे ___ स्थापनासार्थकयंत्रं नाम-अवधि | स्थापना-अवधि | द्रव्य-अवधि | क्षेत्र-अवधि काल-अवधि | भव-अवधि | भाव-अवधि नाम-अवधि | स्थापना-अवधि | द्रव्य-अवधि | जिस क्षेत्रमे| तथा काल- भव-अवधि | भाव-अवधि जीवका अथवा अवधिज्ञानीये अवधिज्ञाननो | रहीने | अवधि. जिस | नारकीने | क्षयोपशम अजीवका | जे द्रव्य अथवा | धणी पुरुष | अवधिज्ञाने | कालमे अवधि | भवे अथवा | आदि भावे जे 'अवधि' ऐसा क्षेत्र दीठा है | जिस अवसरमे | करी वस्तु | उपजे ते | देवताने | अवधिज्ञान नाम देवे ते | तिसका जो | असावधान | देखे 'काल-अवधि,' भवविषये | उपजे ते 'नाम-अवधि,' | आकार अथवा | होय तथा | ते 'क्षेत्र- | अथवा जिस | जे अवधि- | भाव-अवधि', अथवा अवधि | अवधिनो धणी | उपयोग रहित | अवधि' | कालमे | ज्ञान उपजे | अथवा जे ऐसा जो नाम | जे पुरुष तेहनो | 'अवधि' शब्द| कहीए. अवधिका | ते 'भव- द्रव्यनापर्याय ते 'नाम- जे आकार उचरे ते व्याख्यान अवधि' तेहने 'भाव' अवधि' स्थापीये ते । 'द्रव्यकरे-प्रकाशे कहिये ते भाव कहीए. स्थापना-अवधि अवधि.' ते 'काल आश्री जे अवधि ते कहीये 'भाव-अवधि.' इति सप्तार्थ. ज्ञान कहिये कहीये. अवधि'
SR No.022331
Book TitleNavtattva Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri, Sanyamkirtivijay
PublisherSamyagyan Pracharak Samiti
Publication Year2013
Total Pages546
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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