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नवतत्त्वसंग्रहः
(३३) (द्रव्यादि अपेक्षा से ज्ञान का विषय भगवती श० ८, उ०२, सू० ३९५ )
जा देखे
क्षेत्री
कालथी
भावथी
मति
९२
श्रुत
अवधि
मनः पर्यव
केवळ
मति अज्ञान
श्रुत अज्ञान
विभंग
द्रव्यथी
'आदेशे सर्वद्रव्य
उपयोगे सर्व
०
जघन्य- अनंत रूपी
द्रव्य अने उत्कृष्ट
सर्व रूपी द्रव्य
अनंतानंत प्रदेशी
स्कंध, एवं उत्कृष्ट पिण
सर्व क्षेत्र
सर्व क्षेत्र
सर्व द्रव्यम्
परिग्रह द्रव्य
जघन्य-अंगुलका
असंख्यातमा भाग, उत्कृष्ट - लोक सरीखा असंख्य अलोकखंड
समयक्षेत्र ऊंचे
नवसे, ९०० योजन नीचा, अधोलोकना
छु (क्षी)ल्लक प्रतर
सर्व क्षेत्र
सर्व काळ
सर्व काळ
सर्व काळ
परिग्रह
परिग्रह
परिग्रह द्रव्य
परिग्रह
परिग्रह
परिग्रह द्रव्य
परिग्रह
परिग्रह
स्थितिज्ञान - ज्ञान दुप्रकारे - (१) सादि - अपर्यवसित, (२) सादि - सपर्यवसित. सादिसर्पय० जघन्य - - अंतर्मुहूर्त, उत्कृष्ट-६६ सागर झझेरा. मति श्रुत जघन्य - अंतर्मुहूर्त, उत्कृष्ट - ६६ सागर झझेरा. अवधि जघन्य - १ समय, उत्कृष्ट ६६ सागर झझेरा. मनः पर्यव जघन्य -१ समय, उत्कृष्ट-देश ऊन पूर्व कोड. केवल सादि अपर्यवसित.
अज्ञान त्रिधा - ( १ ) अनादि - अपर्यवसित, (२) अनादि - सपर्यवसित, (३) सादिसपर्यवसित. जघन्य-अंतर्मुहूर्त, उत्कृष्ट - अर्धपुद्गल देश ऊन.
मति, श्रुत एवं उपरवत् त्रिधा ज्ञातव्यानि विभंगज्ञानी जघन्य - १ समय, उत्कृष्ट-३३ सागर देश ऊन पूर्व कोड अधिकम्.
(३४) ( अंतरद्वार जीवाभिगम प्रति०, १०, सव्वजीव - ७३९३-३९४)
अंतर जघन्य
अंतर्मुहूर्त
अंतर्मुहूर्त
जघन्य-आवलिकानो
असंख्यातमो भाग,
उत्कृष्ट- असंख्य उत्सर्पिणी अवसर्पिणी जघन्य-पल्योपमनो असंख्यातमो भाग,
एवं उत्कृष्ट पिण
अंतर्मुहूर्त
अंतर्मुहूर्त
सर्व भाव
सर्व भाव
जघन्य - अनंता भाव,
उत्कृष्ट - सर्व भावके अनंतमे भाग जाणे
देखे
ज्ञानी
मति श्रुतज्ञानी
अवधिज्ञानी
मनः पर्यवज्ञानी
१. ओघथी, सामान्यथी । २. ए प्रमाणे उपरनी पेठे त्रण प्रकारे जाणवां ।
अनंता भाव, सर्व भावने अनंत मे
भाग
सर्व भाव
परिग्रह
परिग्रह
परिग्रह
अंतर उत्कृष्ट देश ऊन अर्ध पुद्गलपरावर्त
देश ऊन अर्ध पुद्गलपरावर्त
देश ऊन अर्ध पुद्गलपरावर्त
देश ऊन अर्ध पुद्गलपरावर्त