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जा अरकंमिश्र सीला, निसव कयलियाविदढं ॥१६॥ निय मित्तं निय नाया, निय जण निय पियामहो वा विनियपुत्तोवि कुसीलो, न ववहो होश लोआणं ॥१७॥ सवेसिपि क्याणं, नग्गाणं अलि कोइ पमियारो ॥ पकधमस्सव कन्ना, न होइ सील पुणो जग्गं ॥१७॥ वेवाल जूअरकस -केसरिचित्तयगइंदसप्पाणं ॥लीलाई दल दप्पं, पालंतो निम्मलं सीलं ॥१५॥जे के कम्ममुक्का, सिझा सियंति सिकिहिंति तदा ॥ सवसिं तेसिं बलं, विसालसीलस्स माहप्पं ॥ २० ॥
॥ अथ श्री तपकुलकम् लिख्यते ॥
सो जयउ जुगाइजिणो, जस्संसे सोहए जमामनमो ॥ तवाणग्गिपलिविय-कम्मिधण धूम पंत्तिव ॥१॥ संवरियतवेणं, कासगंमि जो नि जयवं ॥ पूरियनिययपन्नो, हरउ पुरियाई बाहुबली ॥२॥ अथिरंपि थिरं वंक-पि उजुधे