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दुक्कम गरिहा सुक्कमा-णु मोयणं पायचित्त तव चरणं ॥सुह काण नमुक्कारो, लब्नंति पभूयपुन्नेहि ॥ ए॥श्य गुणमणिनंमारो, सामग्गी पाविजण जेणकर्ड ॥ विछिन्नमोहपासा, लहंति ते सासयं सुरकं ॥ १० ॥
॥ अथ श्री पुण्यपाप कुलकम् ॥
बत्तीस दिन सहसा, बाससए होश आउ परिमाणं ॥ फिनंतं पईसमयं, पिब: धम्मंमि जश्वं ॥१॥ज पोसहसही, तवनियमगुणेहिं गमइ एगदिणं ॥त्ता बंधश् देवान, इतिय मित्ताई पलिया ॥ ॥ सगवीसंकोमो सया, सतहत्तरी कोमिलरक सहसाय ॥ सत्तसया सतहुत्तरि, नवनागा सत्त पलियस्स ॥३॥अहासीई सहस्सा, वाससए पुन्नि लरक पहराणं ॥ एगोवित्र जश् पहरो, धम्मजु ता श्मो लाहो ॥४॥ तिसय सगं चत्त कोमि, लरकाबावीस सहस बावीसा । पुसय वीस पुजागा, सुराउ बंधोय गपहरे