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॥ सो अङावसाणाई, उवक्कम णुवकमो श्यरो ॥ ॥ ३३६ ॥ अऊवसाण निमित्ते, आहारे वेयणा परागाए ॥ फासेबाणा पाणू, सत्तविहं फिजाए आलं ॥ ३३७ ॥ आहार सरीरिं दिय, पजत्ती आणपाण नासमणे ॥ चन पंच पंच बप्पिय, ग विगला सन्नि सन्नीणं ॥ ३३७ ॥ हारसरीरिदिय, ऊसास वऊ मणोनिनिवत्ती ॥ हो जउँ दलियाऊ, करणं पश्साउ पजात्तो ॥३३ए॥ पण इंदिय तिबलूसा, साऊ दस पाण चल ब सग अ॥ ग 5 ति चरिंदीणं, असन्नि सन्नीण नव दस य ॥ ३४० ॥ आहारे जय मेहुण, परिग्गहा कोह माण माया य ॥ लोने उहे लोगे, दस सप्ला हुंति सव्वेसिं ॥ ३४१॥ सुह उह मोहा सन्ना, वितिगिला चउदमा मुणेयवा ॥ सोए तह धम्म सणा, सोल समा हवक्ष मणुएसु ॥३४॥ संखित्तासंघयणी, गुरुतर संघयणि मजा एसा॥ सिरि सिरि चंद मुणिंदे, ण निम्मिया अप्प पढपहा ॥ ३४३ ॥ संखित्तयरीउ श्मा, सरीरमोगो