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नति ॥ ३५ ॥ श्प्प यरेग दिसि, संखअमगुणा चन विण ग संखा । जह सीमंतय पयरे, एगुणनग्या सया तिन्नी ॥२३३॥ अपयहाणे पंचन, पढमो मुहमंतिमो हव भूमी ॥ मुह नूमि समासहं, पयरगुणं हो सबधणं ॥ २३४ ॥ बलव सय तिवमा, सत्तसु पुढवोसु ावली निरया ॥ सेस तियासो लरका, तिसय सियाला नवश् सहसा ॥२३५॥ तिसहस्सुच्चा सवे, संखमसंखिड़ विचमा यामा ॥ पणयाल लरक सीमं, तय लरकं अपश्वाणो ॥ २३६ ॥ हिहा घणो सहस्सा, उप्पिसे कुछमे सहस्सं तु॥ मझे सहस्स सुसिरा तिलि सहस्सुस्सिया निरया ॥२३७ ॥ उसु हि. होवरि जोयण, सहस्स बावन्न सढचरिमाए ॥ पुढवीए निरय रहिय, निरया सेसम्मि सवासु॥२३॥ बिसहस्सूणा पुढवी, तिसहस गुणिएहिं नियय पयरेहिं ॥ ऊणा रुवुण निय पयर, नाश्या पबमंतरयं ॥२३ए ॥ तेसीया पंचसया, श्कारस चेव जोयण सहस्सा ॥ रयणा य पलमंतर, मेगोचिय