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रुमुस्सयं विस्थरं विधवाणं । वट्टगिरीणं च सुमेरुवजमिह जाण पुव्वसमं ॥ २७ ॥ मेरुगं पि तह चित्र, णवरं सोमणसहिठ्वरिदेसे। सगश्रमसहसणु त्ति, सहसपणसी उच्चत्ते ॥ २० ॥ तह पणणवई चउणज्य, अचजण अट्ठतीसा य । दस सया कमेणं, पणट्ठाण पिहुत्ति हिट्ठायो॥शए ॥ णकुंमदीववणमुह-दहदी. हरसेलकमलविवारं। णश्छमत्तं च तहा, दहदी. हत्तं च श्ह उगुणं ॥ २३० ॥ गलक्खु सत्तसहसा, अमसिय गुणसी नदसालवणं । पुवावरदोहंत, जामुत्तर अट्ठसीनश्यं ॥२३१॥ बाह गयदंता दोहा, पणलक्खूणसय रिसहस गुणट्ठा। श्यरे तिलरकाप्पएण-सहस्स सय सुएिण सगवीसा ॥ ३५ ॥ खित्ताणुमाणो सेस-सेलणविजयवणमहायामो। चजलरकदीह वासा, वास. विजयविनरो उ श्मो ॥२३३॥ खित्तंकगुणधुवंके, दो सय बारुत्तरेहिं पविनत्ते । सबब वासवासो, हवे इह पुण श्य धुवंका ॥२३४ ॥ धुरि चन्द