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________________ ११० मणि तोरण, तिय धुवघमी कुणंति वणा ॥१॥ जोया सहस्स दंगा, चलऊया धम्म माण गय सींहा ॥ कुकुनाइ आसवं, माणमिणं निय निय करेण ॥ १३ ॥ प विसि पुवाइ पहु, पयादिणं पुवासनिविठो ॥ पयपीढ वविा पार्ट, पण मिातिष्ठं कद धम्मं ॥ १४ ॥ मुणि वैमाणिणि समणि, सजवणजोइ पणदेविदेव तियं ॥ कप्प सुर नर ि तिळां, बंतिगो इ विदिसासु ॥ १५ ॥ च देवि समजिठिया, निविठा नरिडिसुर समणा ॥ इ पण सगपरिस सुणंति, देसणं पणम वप्पतो ॥ १६ ॥ इ आवस्सय वीति वुत्तं, चुन्निय पुणमुणि निविठा ॥ वेमाणिय समणी दो, उठ्ठ सेसा विद्यान नव ॥ १७ ॥ बीांतो तिरि ईसाणि, देवछंदोळा जाण तयंतो ॥ तह चरंसे डुडुवावि, कोणन वद्दि इक्किका ॥ १८ ॥ पीछा सिका रत्त सामा, सुरवण जोइ न वणारयणप्पे ॥ घणु दंग पास गय दवा, सोम जमवरूण धणजरका ॥ १७ ॥ जय विजया जि
SR No.022320
Book TitlePrakaran Ratnakar Mool
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMehta Nagardas Pragjibhai
PublisherMehta Nagardas Pragjibhai
Publication Year1936
Total Pages118
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size7 MB
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