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________________ १०३ ॥ अथ यात्मकुलकं लिख्यते ॥ धम्म प्पह रमजि जो, पणामितु जिणे महिंद नमणिों ॥ अप्पा वबोह कुलयं, वुद्धं जवपुक कय पलयं ॥१॥अत्ता वगमो तऊई, सयमेव गुणेहिं किं बहु जणसि ॥ सूर दल लरिकआई, पहाइनल सवह निवहेण ॥२॥ दम सम सत्तम मित्ति, संवेए विवेय तिवनिवेया ॥ एए पगूढ अप्पा, वबोह बीयस्स अंकुरा ॥३॥ जो जाण अप्पाणं, अप्पाणं सो सुहाणं नहु कामी ॥ पत्तंमि कप्परूरके, रूरके किं पत्रणा असणे ॥४॥ नियविन्नाणे निरया, निरयाश्ऽहं लहंति न कयावि जोहो मग्ग लग्गो, कह सो निवमेश कूवंमि ॥५॥ तेसि रेसिझी, रिकी रणरणय कारणं तेसिं ॥ तेसि मपुन्ना आसा, जेसिं थप्पा न विन्नाउ ॥६॥ ता उत्तारो जवजलहो, ता उजेड महाल मोहो॥ता अश् विसमो लोहो, जाजाउ नो निउबोहो ॥७॥जेण सुरवसुर नाहा, हाहा अणाहुव्व बाहियासोवि ॥ अऊप्पकाणं ज.
SR No.022320
Book TitlePrakaran Ratnakar Mool
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMehta Nagardas Pragjibhai
PublisherMehta Nagardas Pragjibhai
Publication Year1936
Total Pages118
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size7 MB
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