________________
२७ 29? संसारजल हिमवे ॥ निबुझमाणे भइससे हिं पद्मिं समरेक सीमंधर सामिय्यक मलंग जईचदपरमप्यं ॥ निघेना तदये जमा मराएंग ता समरह जिएना ह विदेह वा संम' विहरते रह जो निचे महाग ।। विदेहवास में साम विहरतो ॥ 'छम्मदेसणारा!! विलासकुम ॥१४ पलूसें मश्रणे ॥ संजा समय म सहकाल हि॥ सीमंधरेतिज्ञयरंग वंदेहं परमभीए॥१