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वरण वीजें सेवक ना' गुल तेहने सम बलिज्जई भिजूगुणो ॥ पवनकदी ईदी करतागुणं 'पालले कही हूं' नपसंरकं नये सुत्रस्स एजुवे ॥ नारीता तो न'प्रथम'नंएबल' गुए कहीं ई महिलान 'नो' भया विज निना मे जे ऐकरी आपतु मोहोटाए तु ॥१६७४ ननस्सए जेल माह मे ॥१७॥
बोली' ही तकारी वचन
विज़ई 'वियू ।।
करवनय देइईटान
किजाई दिएउ दिज्जए दाएं को झां गुलजालाईतो तेगुए ग्रहण कराई ' परगुल' महणं किज्जइ ॥ एमूलमंत्रच सर्वने दस्पदा सायत करवा नोटे अमूल मंतंद सीकर ॥ १४॥