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THE ESSENCE OF JAINA SCRIPTURES
जस ण संति परेसा पोसमेत बतबदो सा। सुन बाग तमत्वं मत्वंतरमूरमात्वीवो ॥१४॥ सपनेसेहि समग्गो लोगों बहिरिणद्वियोरिणच्चो । जो तं मागवि जीवो पागचक्लेग संबडो ॥१४॥ इंदियपागोब तथा बलपाणोतह याउपागोय। माणप्पागप्पागो बोवाणं होति पागा ते ॥१४६/१॥ पंचविवियपागा मगणिकायाय तिणि बलपागा। मागप्पागप्पाणो पाउपपाणेग होति बसपागा ॥१४६२॥ पारसंहिचहि जीवविधीवत्सविमोहिमोवियोपुव्वं । सो नीवो पागा पुण पोग्गलयब्यहि सिब्बत्ता ॥१७॥ जीबो पागणिबडो बढो मोहादिएहि कम्मेहि । उवभंग कम्मफल बन्मादि अमोहि कम्मेहिं ।।१४।। पाणावा जोबो मोहमोसेहि कुसारि जीवाणं । यदि सो हवि हि षो सासावरणाविकम्मेहि ।।१४६।। पापा कम्ममलिमसो घरेदिपारणे पुणोतुनो अन्ये । नवर्याद जाब मतिं देहपधाणेसु विसपेतु ॥१५०॥ मो रियारिविनई भवीय उवयोगमष्पगं भादि । कम्मेहि सोग रंगदि किह तं पाणा अणुचरति ॥१५॥ अस्थित्तचिस्स हि त्यस्तत्वंतरम्हि संभूयो। प्रत्यो पलामो सो संगणालिपमेदेहि ।।१५२।। गरणारयतिरियसुरा संतागादोहि मगहा जाता। पस्यावा जीवाणं उत्यारिहि गामकम्मरस ॥१५३॥ तं सम्भावगिवई बम्बसहा तिहा समक्खा । जागरिलो सवियप्पं ग मुहरि सो माधिम्हि ॥१४॥ प्रप्पा उपयोगप्पा उबमोगो गागवंसर्ग भगिनो। सो वि सुहो अहो वा उवनोपो अप्पणो हरि ॥१५॥