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आराधक आत्माओने प्राप्त थाय छे, ए सम्यग्ज्ञानना योगे श्रीजिनकथित तत्त्वोनी श्रद्धा निर्मल बने छे, अने चारित्रधर्मनी आराधनाना मार्गे पगला मांडी शकाय छे.
एटले सामान्यरीतिये स्वाध्यायधर्मना आ मूलभूत त्रणेय प्रकारो आत्मकल्याणना अभिलाषुक आत्माओ माटे सर्व प्रकारे स्पष्ट मार्गदर्शन आपे छे. प्रस्तुत ग्रन्थनुं प्रकाशन
प्रस्तुत 'स्वाध्यायदोहन ' ग्रन्थमा, स्वाध्यायधर्मना आ त्रणेय प्रकारोना विषयने प्रतिपादित करती कृतिओ, दोहनसंग्रहरूपे रजू करवामां आवी छे. केटलीक कृतिओ, प्रार्थनारूप स्वाध्यायमां गणी शकाय तेम छे. ज्यारे केटलीक कृतिओ गुणस्तवना-आत्मनिन्दाना स्वाध्यायरूप छे. तेमज केटलीक कृतिओ श्री जैनशासनना परमरहस्योना परिशीलनरूप तत्त्वचिन्त्वन स्वाध्यायमां आवे तेम छे.
__ आ ग्रन्थमांनी संस्कृत तेमज प्राकृतभाषाबद्ध पद्यमय कृति-रचनाओ, ए पूर्वकालीन श्रुतस्थविर महापुरुषोना ग्रन्थोमांथी यथामति-शक्ति चूंटी चूंटीने रजू करवामां आवेल छे, (जेने अंगेनो नाम-स्थान विगेरेनो निर्देश आ ग्रन्थमां अन्य स्थाने करवामां आव्यो छे. ) ..