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________________ स्थिति अन्तःकोटाकोटी सागरोपम की कर देती है, तब आत्मा 'यथाप्रवृत्तिकरण' करती है। ___ यह यथाप्रवृत्तिकरण भी आत्मा अनेक बार करती है। कर्मों की स्थिति में ह्रास करने की यह प्रक्रिया अभव्य की आत्मा भी कर देती है, परन्तु इतने मात्र से वह प्रात्मा सम्यग्दर्शन का स्पर्श नहीं कर पाती है। यथाप्रवृत्तिकरण के बाद जब आत्मा अपूर्वकरण और अनिवृत्तिकरण करती है, तभी वह आत्मा सम्यग्दर्शन प्राप्त करती है, उसके पूर्व नहीं। २. अपूर्वकरण -सम्यक्त्व की प्राप्ति के अभिमुख बनी हुई प्रात्मा अपने चरम यथाप्रवृत्तिकरण के बाद अवश्य ही अपूर्वकरण करती है। इस अपूर्वकरण में प्रतिसमय आत्मविशुद्धि बढ़ती जाती है । इस अपूर्वकरण में जीवात्मा ऐसी चार विशिष्ट क्रियाएँ करती हैं, जो उसने पूर्व में कभी नहीं की है। अपूर्वकरण में आत्मा स्थितिघात, रसघात, गुणश्रेणि और अपूर्वस्थितिबन्ध करती है। ३. अनिवृत्तिकरण-अपूर्वकरण के बाद आत्मा 'अनिवृत्तिकरण' करती है। इस अनिवृत्तिकरण में प्रति समय अनन्तगुणी विशुद्धि होती जाती है। अनिवृत्तिकरण में भी स्थितिघात, रसघात, गुणश्रेरिण और अपूर्वस्थितिबन्ध की सूक्ष्म-क्रियाएँ होती हैं। इसके साथ ही प्रात्मा इसमें 'अन्तरकरण' करती है। इस 'अन्तरकरण' में मिथ्यात्व का उदय रुक जाता है और आत्मा में सम्यग्दर्शन गुण प्रकट होता है । शान्त सुधारस विवेचन-७६
SR No.022306
Book TitleShant Sudharas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnasenvijay
PublisherSwadhyay Sangh
Publication Year1989
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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