SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 58
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अर्थ-असंख्य द्वीप-समुद्रों से परिपूर्ण एक राजलोक विस्तार वाला तिर्छालोक है, जिसमें ज्योतिषचक्र लोकपुरुष के कटिप्रदेश पर सुशोभित मेखला के समान है ।। १४२ ॥ विवेचन ति लोक का स्वरूप तिर्छालोक-तिर्छालोक अर्थात् तिर्यक्लोक की ऊँचाई १८०० योजन की है और इसकी चौड़ाई (व्यास) एक राजलोक प्रमारण है। इसके मध्य में मेरुपर्वत आया हुआ है, जिसकी ऊँचाई एक लाख योजन की है। मेरुपर्वत का मूल १००० योजन का है और पृथ्वी की ऊँचाई ९६००० योजन है। संभूतला पृथ्वी की चारों दिशाओं के चार रुचक प्रदेश हैं । ऊपर-नीचे इस प्रकार गिनने से ८ रुचक प्रदेश हैं, इनसे ६०० योजन नीचे और ६०० योजन ऊपर का क्षेत्र तिर्छालोक कहलाता है। यह मेरुपर्वत जम्बूद्वीप में आया हुआ है, जो थाली के आकार का है, जिसका व्यास १ लाख योजन है। जम्बू द्वीप के चारों ओर दो लाख योजन के व्यास वाला वलयाकार लवरणसमुद्र है। उस लवणसमुद्र के चारों ओर चार लाख योजन के विस्तार वाला धातकी खण्ड है, उसके चारों ओर पाठ लाख योजन के विस्तार वाला कालोदधि समुद्र है और उसके चारों ओर १६ लाख योजन के विस्तार वाला पुष्कर द्वीप है। उस पुष्कर द्वीप के ८ लाख योजन के बाद चारों प्रोर वलयाकार रूप में मानुषोत्तर पर्वत आया हुआ है। उस मानुषोत्तर पर्वन के शान्त सुधारस विवेचन-४४
SR No.022306
Book TitleShant Sudharas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnasenvijay
PublisherSwadhyay Sangh
Publication Year1989
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy