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________________ लोकस्वरूप भावना सप्ताऽधोऽधो विस्तृता याः पृथिव्य श्छत्राकाराः सन्ति रत्नप्रभाद्याः । ताभिः पूर्णो योऽस्त्यधोलोक एतौ , पादौ यस्य व्यायतौ सप्तरज्जूः ॥ १४१ ॥ __(शालिनी) अर्थ-नीचे-नीचे विस्तार पाने वाली, छत्र के आकार वाली रत्नप्रभा आदि सात पृथ्वियाँ हैं और उनसे परिपूर्ण सात राजलोकप्रमाण अधोलोक है; जो इस लोक-पुरुष के दो पैर समान है ॥ १४१ ॥ - - विवेचन अधोलोक का स्वरूप इस भावना के अन्तर्गत चौदह राजलोक प्रमाण अति विस्तृत विश्व के स्वरूप का चिन्तन करना चाहिए। प्रश्न खड़ा हो सकता है कि प्रात्म-स्वरूप के चिन्तन में लोक-स्वरूप की भावना की क्या उपयोगिता है ? शान्त सुधारस विवेचन-३५
SR No.022306
Book TitleShant Sudharas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnasenvijay
PublisherSwadhyay Sangh
Publication Year1989
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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