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________________ ले जाता है। पाप के अधीन बनकर तो आज तक आत्मा ने भयंकर से भयंकर दुःखों का अनुभव किया है । _ अपनी आत्म ने इस भयंकर संसार में जिन-जिन दुःखों का, वेदनाओं का अनुभव किया है, उसका वर्णन करने में कौन समर्थ है ? यावत् सर्वज्ञ-सर्वदर्शी भी अपनी वाणी से उन दुःखों का वर्णन करने में समर्थ नहीं है। नरक की भयंकर वेदना...निगोद की वह बेहोशी की हालत तिर्यंच के भव की मारपीट-कत्ल आदि की वेदना.... मानवभव में भी भूख-प्यास-गरीबी-भुखमरी-निर्धनता की वेदना का कोई पार नहीं। दु:ख के दाग से कलंकित आत्मा के भयंकर भूतकालीन इतिहास को सुख की ज्योति में रूपान्तरित करने का श्रेय धर्म को ही है। भले ही आत्मा का भूतकाल भयंकर पापों से कलंकित बना हो""किन्तु जब से जिस प्रात्मा ने अपने आपको धर्म के चरणों में समर्पित कर दिया, तभी से उस धर्म ने आत्मा को सुख के नन्दनवन में प्रवेश दिला दिया। आज तक जिन-जिन आत्माओं ने मुक्तिपद प्राप्त किया है, उनके अन्तिम ३-५-८-१०-१५-२० भवों को छोड़कर शेष भवों का निरीक्षण करेंगे तो ज्ञात होगा कि वे कितनी भयंकर दुर्दशा की भागी थीं किन्तु जब से उन आत्मानों ने जिनशासन के चरणों में समर्पण कर दिया, तब से उनकी भौतिक और आध्यात्मिक समृद्धि बढ़ती ही गई। विशुद्ध धर्म अर्थात् पुण्यानुबन्धी पुण्य के उदय से प्राप्त शान्त सुधारस विवेचन-३२
SR No.022306
Book TitleShant Sudharas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnasenvijay
PublisherSwadhyay Sangh
Publication Year1989
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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