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________________ धर्म का वास्तविक फल तो शाश्वत अजरामर पद की प्राप्ति रूप मोक्ष पद ही है। दुनिया के सुखों की प्राप्ति यह तो धर्म का आनुषंगिक फल है। गेहूँ बोएंगे तो घास तो उगने वाला ही है। गेहूँ बोने का मुख्य उद्देश्य गेहूँ की प्राप्ति है, न कि घास की प्राप्ति । घास पाने के लिए गेहूँ बोने वाला मूर्ख ही गिना जाता है। इसी प्रकार धर्म का वास्तविक फल मोक्ष-सुख की प्राप्ति है, अतः मोक्ष-प्राप्ति के उद्देश्य से ही धर्म का आचरण और प्रतिपादन होना चाहिये, न कि संसार-सुखों की प्राप्ति के लिए। जल का यह स्वभाव है कि वह ताप को दूर करता है और शीतलता प्रगट करता है। बस, इसी प्रकार धर्म का यह स्वभाव है कि वह अनर्थ की परम्पराओं को दूर करता है और हित की परम्परा का सर्जन करता है। शालिभद्र की आत्मा ने पूर्व भव में शुभ भावपूर्वक एक छोटा सा दान किया, उस दान ने उन्हें भौतिक समृद्धि के शिखर पर पहुंचा दिया और अन्त में उन्हें मोक्षपद भी दे दिया। धर्म तो करुणामूर्ति है। वह जीव को शिव और आत्मा को परमात्मा बनाना चाहता है। ऐसे महान् धर्म को भक्तिभावपूर्वक प्रणाम हो! भक्तिभावपूर्वक धर्म को किया गया प्रणाम भी जीवात्मा के उद्धार में सहायक बनता है । प्राज्यं राज्यं सुभगदयिता नन्दना नन्दनानां , रम्यं रूपं सरसकविता - चातुरी सुस्वरत्वम् । नीरोगत्वं गुणपरिचयः सज्जनत्वं सुबुद्धिः किं नु ब्रूमः फलपरिणति धर्मकल्पद्रुमस्य ॥१३१॥ (मन्दाक्रान्ता) शान्त सुधारस विवेचन-१५
SR No.022306
Book TitleShant Sudharas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnasenvijay
PublisherSwadhyay Sangh
Publication Year1989
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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