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________________ का और न पिता का। सगा भाई भी दूर हो जाता है । अन्त में, उस अंजना को भयंकर वन-निकुञ्ज की शरण लेनी पड़ती है। एकमात्र वसन्ततिलका दासी उसके साथ है। वन की भयंकर गुफा में वह आश्रय करती है और जिनधर्म से भावित होने के कारण परमात्मा का सतत स्मरण करती है। भयंकर दुःख में भी हिम्मत न हारकर नमस्कार महामन्त्र आदि का स्मरण करती है और उसी धर्म के प्रभाव से वह संरक्षण पाती है। • अनाथीमुनि की पूर्वावस्था भी कुछ ऐसी ही है। धन, कुटुम्ब और परिवार से समृद्ध होते हुए भी भयंकर शूल का निवारण नहीं हो पा रहा है। विशाल परिवार भी वेदना में सहभागी नहीं है। आखिर अनाथीमुनि की आत्मा में से एक आवाज निकलती है—'मोह ! वास्तव में, इस भयंकर संसार में मैं अनाथ हूँ।' इसीलिए तो वे श्रेणिक महाराजा को समझाते हुए कहते हैं-- जिन धर्म विना नर नाथ, · नथी कोई मुक्ति नो साथ । इस विषम संसार में जीवात्मा का सच्चा साथी जिनेश्वर का धर्म ही है। दुनिया की सभी शक्तियाँ जब विपरीत हो जाती हैं, एक भी व्यक्ति अपनी प्रोर देखने के लिए भी तैयार नहीं होता है, ऐसी परिस्थिति में एकमात्र परमात्मा का बताया हुआ धर्म ही हमारा रक्षण कर सकता है। सैन्य कमजोर हो जाय, भुजा-बल घट जाय, तब एकमात्र धर्म ही सन्नद्ध कवच वाला बनकर हमारी रक्षा करता है। 0 शान्त सुधारस विवेचन-१३
SR No.022306
Book TitleShant Sudharas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnasenvijay
PublisherSwadhyay Sangh
Publication Year1989
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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