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________________ बन । आत्मा की स्मृति हो सच्चा जीवन है और आत्मा की विस्मृति ही मरण है । आत्मा के नित्य स्मरण से आत्मा अनुपम सुख का अनुभव करती है । निदानं परब्रह्मपरिणाम स्फुटकेवलविज्ञानम् विरचय , विनयविवेचितज्ञानं, सुधारसपानं रे । शान्त रे ।। अनुभव० २२६ ॥ अर्थ - परब्रह्म - परमात्मस्वरूप की प्राप्ति के निदान रूप तथा निर्मल केवलज्ञान प्रदान करने वाला विनय ( पू. उपा. श्री विनय विजयजी म. ) द्वारा विवेचित 'शान्त सुधारस' का हे भद्र ! तू पान कर ।। २२६ ।। विवेचन शान्त सुधारस का पान करो प्रस्तुत ग्रन्थ की रचना महोपाध्याय श्रीमद् विनय विजयजी महाराज ने की है । ग्रन्थकार महर्षि ग्रन्थ की समाप्ति पर अपने नाम का निर्देश करते हुए इस शान्त सुधारस का बारम्बार पान करने के लिए प्रेरणा कर रहे हैं । यह 'शान्त सुधारस' वास्तव में एक अमृतकुम्भ है । पर अर्थात् उत्कृष्ट । ब्रह्म अर्थात् विशुद्ध चैतन्य | ग्रन्थकार महर्षि औदासीन्य भावना का उपसंहार करते हुए कहते हैं कि यह औदासीन्य भावना अपनी आत्मा को परब्रह्म की प्राप्ति कराने वाली है । शान्त सुधारस विवेचन- २४०
SR No.022306
Book TitleShant Sudharas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnasenvijay
PublisherSwadhyay Sangh
Publication Year1989
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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