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________________ आदि अनादिकाल से अवस्थित हैं। स्वयम्भूरमण आदि अपनीअपनी मर्यादा में रहते हैं, यह सब धर्म का ही साक्षात् प्रभाव है । हेमचन्द्राचार्यजी ने भी योगशास्त्र' में कहा है (१) धर्म के प्रभाव से ही कल्पवृक्ष आदि अभीष्ट फल देते हैं। (२) समुद्र पृथ्वीतल को डुबो नहीं देता है और बादल पृथ्वी को सदा आश्वासन देते हैं; यह सब धर्म का ही प्रत्यक्ष प्रभाव है। प्राग तिरछी नहीं जलती है और पवन ऊर्ध्वगति नहीं करता है, यह सब धर्म का ही फल है। यह पृथ्वी बिना किसी पालम्बन से रहकर जगत् के जीवों के लिए आधार रूप बनी हई है। यह धर्म का ही प्रभाव है। _ विश्व के उपकार के लिए सूर्य-चन्द्र उदय पाते हैं, यह धर्म का ही प्रभाव है। अहो ! धर्म की महिमा का क्या गान करें? वह तो बन्धुरहित के लिए बन्धु समान है, मित्ररहित के लिए मित्र समान है, अनाथ के लिए नाथ समान है । यस्मिन्नैव पिता हिताय यतते, भ्राता च माता सुतः , सैन्यं दैन्यमुपैति चापचपलं, यत्राऽफलं दोर्बलम् । तस्मिन् कष्टदशाविपाकसमये, धर्मस्तु संमितः , सज्जः सज्जन एष सर्वजगतस्त्राणाय बद्धोद्यमः ॥१२६॥ (शार्दूलविक्रीडितम) शान्त सुधारस विवेचन-११
SR No.022306
Book TitleShant Sudharas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnasenvijay
PublisherSwadhyay Sangh
Publication Year1989
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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