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________________ हे प्रात्मन् ! केवल बातें करने से काम नहीं चलेगा। मोक्ष अथवा निजानन्द की बातें करने से ही मोक्ष का अनुभव होने वाला नहीं है, इस हेतु तुझे प्रयत्न और पुरुषार्थ करना पड़ेगा। जो केवल बातें ही करता है, प्रयत्न नहीं करता है, उसे कुछ नहीं मिलता है और जो प्रयत्न-पुरुषार्थ करता है, उसे आम्रवृक्ष अर्थात् मीठा फल प्राप्त होता है, अतः तू भी प्रात्मस्वरूप के चिन्तन और अनुभव के लिए प्रयत्नशील बन। . योऽपि न सहते हितमुपदेशं , तदुपरि मा कुरु कोपं रे। निष्फलया कि परजनतप्त्या , .. कुरुषे निजसुखलोपं रे ॥ अनुभव० २२४ ॥ अर्थ-जो तुम्हारे हितकारी उपदेश को सहन नहीं करते हैं, उन पर तू क्रोध मत कर। व्यर्थ किसी पर क्रोध करके तू अपने स्वाभाविक सुख का लोप क्यों करता है ? ॥ २२४ ।। विवेचन क्रोध न करो ___हे प्रात्मन् ! तू एक क्रोधी प्रात्मा को देखकर उसे शान्त बनाना चाहता है और इस हेतु तू उसे उपदेश देता है. उसे योग्य सलाह देता है, परन्तु सम्भव है""वह तेरी बात स्वीकार न भी करे, वह तेरी हितकारी बात की भी उपेक्षा कर दे... शायद वह तेरी बात सुनने के लिए भी तैयार न हो।' ऐसी परिस्थिति में भी हे आत्मन् ! तुझे उस पर क्रोध करने का अधिकार नहीं है। शान्त सुधारस विवेचन-२३२
SR No.022306
Book TitleShant Sudharas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnasenvijay
PublisherSwadhyay Sangh
Publication Year1989
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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