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मार्ग से दूर ही रहती हैं, इतना ही नहीं यदि उन्हें धर्म का उपदेश दिया जाय तो भी वह उनके क्रोधादि को अभिवृद्धि का ही कारण बनता है। जिस प्रकार सर्प को पिलाया गया दूध भी विष में रूपान्तरित हो जाता है, उसी प्रकार अत्यन्त पापी, क्रूर और निष्ठुर आत्माओं को दिया गया हितोपदेश भी अनर्थ की परम्परा का सर्जन करता है।
पंचतंत्र में एक सुघरी पक्षी और एक बन्दर की कथा इस बात की साक्षी है। भयंकर वर्षा की ठण्डी लहरों से ठिठुरते हुए बन्दर को देख, उस पक्षो ने कहा-"अरे ! तुम इस प्रकार ठण्ड से ठिठुर रहे हो ? तुमने अपने रहने के लिए घोंसला क्यों नहीं बनाया ?"
उस पक्षी ने तो बन्दर को अच्छी सलाह दी थी, किन्तु इस सलाह को सुनकर उस बन्दर को गुस्सा आ गया और उसने कहा"अरे! तू कौन है, मुझे कहने वाली?" इतना कहकर उसने एक छलांग लगाई और उस पक्षो के घोंसले को ही नष्ट-भ्रष्ट कर दिया।
दुनिया में ऐसी क्रूर वृत्ति वाले बहुत से लोग होते हैं, जिन्हें भले ही अच्छी सलाह दी जाय, फिर भी परिणाम बुरा ही प्राता है।
इस दुनिया में निष्कारण उपकारीजन बहुत कम मिलते हैं। अपने उपकारी के प्रति उपकार करने वाले जन कुछ मिल जाएंगे। इसके साथ दुनिया में कुछ ऐसे भी लोग होते हैं, जिन्हें दूसरे का अहित करने में ही प्रानन्द आता है । यदि कोई उन पर उपकार भी करे तो भी वे इस उपकार का बदला अपकार से ही देते हैं।
शान्त सुधारस विवेचन-२१७