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करता है ? वे इस जगत् में सर्वश्रेष्ठ वैद्य हैं, तू अपने रोगों का निदान उनके पास करा ले। वे कुशल वैद्य हैं। प्रात्मा के समस्त भाव रोगों को निर्मूल करने की औषधियाँ उनके पास है।
. हे भव्यात्मन् ! तू व्यर्थ ही दु:खी हो रहा है। तीर्थंकर परमात्मा भाव-वैद्य हैं, उनकी आज्ञा को शिरोधार्य कर तू भाव रोग में से सदा के लिए मुक्त बन जा।
जो आत्मा तीर्थकर परमात्मा की शरणागति स्वीकार करती है उनकी आज्ञा का पूर्ण पालन करती है, वह प्रात्मा अल्प समय में ही भव रोग से सर्वथा मुक्त बन जाती है ।
तीर्थकर परमात्मा एक कुशल वैद्य हैं, वे रोग के निदान और उसको चिकित्सा को अच्छी तरह से जानते हैं।
जिस आत्मा को जिस तरह का रोग लगा हुआ है, उस रोग को किस प्रौषधि से दूर किया जा सकता है ? इस ज्ञान में वे पूर्ण कुशल हैं, अतः आत्म-हित चाहने वाले हे मुमुक्षु भव्यात्मन् ! तुम्हारे लिए तो जिनेश्वरदेव रूप कुशल वैद्य का अनुसरण करना ही हितकर है।
शृणुतकं विनयोदितवचनं, नियतायतिहित • रचनम् । रचयत सुकृत-सुख-शतसन्धानं , शान्त · सुधारसपानं रे ॥ सुजना० २१६ ॥
शान्त सुधारस विवेचन-२१४