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________________ सत्य-क्षमा-मार्दव-शौच-सङ्ग त्यागाऽऽर्जव-ब्रह्म-विमुक्तियुक्तः । यः संयमः किं च तपोऽवगूढश्चारित्रधर्मो दशधाऽयमुक्तः ॥१२६॥ (इन्द्रवज्रा) अर्थ-सत्य, क्षमा, मार्दव, शौच, संगत्याग (अपरिग्रह), आर्जव, ब्रह्मचर्य, विमुक्ति (लोभत्याग), संयम और तप रूप दस प्रकार का चारित्र-धर्म कहा गया है ॥२२६।। विवेचन दस प्रकार का चारित्रधर्म जैन दर्शन स्याद्वाद दर्शन है, अतः इस दर्शन में एक ही वस्तु का निरूपण भिन्न-भिन्न अपेक्षाओं से भिन्न-भिन्न प्रकार से किया मया है। पहली गाथा में ग्रन्थकार पूज्य उपाध्याय श्री विनय विजयजी म. ने धर्म के चार प्रकार बतलाए। अब दूसरी गाथा में वे चारित्रधर्म-यतिधर्म के दस प्रकार बतलाते हैं। अन्य अपेक्षा से धर्म के दो भेद हैं-(१)श्रुतधर्म और (२) चारित्रधर्म। इस प्रकार चारित्रधर्म के दस प्रकार बतलाए गए हैं। जिन्हें यतिधर्म-साधुधर्म या श्रमणधर्म भी कहते हैं। (१) सत्य-सत्य अर्थात् कभी भी मिथ्या-भाषण नहीं करना। दीक्षा अंगीकार करते समय सर्वथा मृषावाद विरमण की शान्त सुधारस विवेचन-६
SR No.022306
Book TitleShant Sudharas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnasenvijay
PublisherSwadhyay Sangh
Publication Year1989
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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