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________________ अर्थ-अहो ! भगवन्त (महावीर परमात्मा) में शिवसुख के कारण रूप क्षमा गुण कितना अपूर्व कोटि का था ! जिसके देखने पर, रोष सहित बड़े अभिमान पूर्वक संचित कर्मसमूह शीघ्र अदृश्य हो जाता है ।। १६७ ।। विवेचन प्रभु महावीर परमात्मा की क्षमा अहो ! भगवान महावीर के जीवन पर दृष्टिपात करें तो ज्ञात होगा कि उनके जीवन में एक क्षमा का गुरण भी कितना अपूर्व कोटि का था! कटपूतना राक्षसी ने भयंकर शीत उपसर्ग किया, ग्वाले ने उनके कानों में खीले ठोके, चंडकोशिक विषधर ने उन्हें भयंकर दंश दिया, परन्तु भगवान महावीर ने उन सब कष्टों को अत्यन्त ही समतापूर्वक सहन किया था। उपसर्ग करने वालों के प्रति उनके हृदय में लेश भी दुर्भाव पैदा नहीं हुआ था। वे तो उपसर्ग करने वाले को भी उपकारी मानते थे। शत्रु के प्रति भी उनके हृदय में वही प्रेम और स्नेह था, जो मित्र के प्रति था अर्थात् उनके जीवन में शत्रु-मित्र की कोई भेदरेखा नहीं थी। परमात्मा ने एक क्षमा गुण के द्वारा अपनी आत्मा पर साम्राज्य फैलाने वाले कर्मसमूह को छिन्न-भिन्न कर दिया। जो कर्म अन्य आत्माओं को अलग-२ ढंग से परेशान कर रहे हैं, उन सभी कर्मों को प्रभु ने एक क्षमा गुण के द्वारा नष्ट कर दिया। आत्मा यदि किसी एक गुण को भी पूर्ण रूप से प्रात्मसात् सुधारस-१२ शान्त सुधारस विवेचन-१७७
SR No.022306
Book TitleShant Sudharas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnasenvijay
PublisherSwadhyay Sangh
Publication Year1989
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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