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________________ नहीं है, गुणानुरागी बनने के लिए गुणदृष्टि का विकास अनिवार्य है। एक बार कृष्ण महाराजा ने युधिष्ठिर को कहा"जाओ! इस नगर में जितने भी खराब व्यक्ति हैं, उनके नाम लिखकर लाओ।" युधिष्ठिर कागज और कलम लेकर चल पड़े। थोड़ी देर बाद कृष्ण महाराजा ने दुर्योधन को कहा'जाओ! इस नगर में जितने अच्छे व्यक्ति हैं, उनके नाम लिखकर ले आयो।' युधिष्ठिर पूरे नगर में घूमे, परन्तु कहीं भी उन्हें एक भी व्यक्ति खराब नजर नहीं आया। सभी व्यक्तियों में उन्हें कोईन-कोई गुण दिखाई देता, इस कारण वे एक भी व्यक्ति का नाम नहीं लिख पाए। उनका कागज वैसा ही कोरा था। दुर्योधन भी नगर में घूमा, परन्तु दोष-दृष्टि के कारण उसे एक भी व्यक्ति अच्छा या गुणवान नजर नहीं आया। हर व्यक्ति में उसे कोई-न-कोई दोष नजर आ जाता, इस कारण उसने भी किसी व्यक्ति का नाम नहीं लिखा। दूसरे दिन युधिष्ठिर और दुर्योधन दोनों राजसभा में उपस्थित हुए, परन्तु दोनों के कागज कोरे देखकर कृष्ण महाराजा के आश्चर्य का पार न रहा। उन्होंने यही निर्णय लिया कि व्यक्ति की जैसी दृष्टि होती है, उसे वह वस्तु वैसी ही दिखाई देती है। गुणदृष्टि वाले को सर्वत्र गुण ही दिखाई देते हैं और दोषदृष्टि वाले को सर्वत्र दोष ही दिखाई देते हैं। शान्त सुधारस विवेचन-१५२
SR No.022306
Book TitleShant Sudharas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnasenvijay
PublisherSwadhyay Sangh
Publication Year1989
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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