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________________ ममता कर्मबन्धन का हेतु है। समता कर्ममुक्ति का मार्ग है । कलह कर्मबन्धन का हेतु है। मैत्री कर्म-मुक्ति की हेतु है। मानसरोवर के हंस की यह विशेषता होती है कि जलमिश्रित दूध देने पर भी वह जल और दूध का भेद कर देता है। उसकी चोंच में यह विशेषता होती है कि वह दूध का पान कर लेता है और जल को छोड़ देता है । हे पात्मन् ! तू मानसरोवर के हंस की तरह विवेक को धारण कर; उस विवेक के द्वारा कर्तव्य-अकर्तव्य का विचार कर और कलह का त्याग कर, समतारस का पान कर। इस हेतु तू गुणवान व्यक्तियों का संग कर। गुणवानों के संग से अपनी आत्मा में भी गुण का रंग आता है और आत्मा गुरणों से पुष्ट बनती है। हे आत्मन् ! गुण के परिचय/संग से पुष्ट बनकर तू विवेक को धारण कर। उस विवेक को धारण कर तू ममता का त्याग कर, कलह-वृत्ति का त्याग कर और समतारस का पान कर । समत्व के मासेवन से हे प्रात्मन् ! तू कर्म के बन्धन से मुक्त हो सकेगा। विवेकी व्यक्ति कर्त्तव्य और अकर्तव्य का भेद कर सकता है और कर्तव्य का आचरण और अकर्तव्य का त्याग कर सकता है। अतः हे आत्मन् ! तू विवेक को धारण कर, कर्तव्य-प्रकर्तव्य का भेद कर, उन्मार्ग का त्याग कर और सन्मार्ग का प्राचरण कर। शान्त सुधारस विवेचन-१३८
SR No.022306
Book TitleShant Sudharas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnasenvijay
PublisherSwadhyay Sangh
Publication Year1989
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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