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________________ वनस्पतिकाय के दो भेद हैं-साधारण और प्रत्येक । साधारण वनस्पतिकाय के एक शरीर में अनन्त जीव एक साथ रहे हुए हैं। उनका जीवन एक साथ है, वे निरन्तर जन्ममरण की पीड़ा भोग रहे हैं। उनकी काय-स्थिति अनन्तकाल की है। प्रत्येक वनस्पतिकाय के जीव भी निरन्तर सर्दी, गर्मी व वर्षा की पीड़ा सहन कर रहे हैं। ___इस संसार में बेइन्द्रिय प्रादि जीवों की भी अत्यन्त दयनीय स्थिति है। चींटी सुगन्ध व स्वाद पाने के लिए घी को प्रोर दौड़ती है, परन्तु घी के निकट पहुंचते ही उसका जीवन सदा के लिए समाप्त हो जाता है। उस बेचारी को कहाँ पता है कि यहाँ मुझे स्वाद नहीं, बल्कि मौत हो मिलने वाली है। दूध-घी की सुगन्ध से आकर्षित होकर मक्खी ज्यों ही दूध-घी पर बैठती है, त्योंही उसका जीवन समाप्त हो जाता है। बैठी थी कुछ पाने के लिए, परन्तु वहीं पर सब कुछ खो देती है । पंचेन्द्रिय तियंचों की भी कैसी बुरी हालत है ? मत्स्यगलागलन्याय के अनुसार बड़े प्राणी छोटे प्राणियों का भक्षण करते जा रहे हैं। __चूहे को बिल्ली का डर है, बिल्ली को कुत्ते का डर है, कुत्ते को अन्य हिंसक प्राणी का डर है, इस प्रकार सभी तिथंच अत्यन्त भयभीत होकर ही जी रहे होते हैं। साथ ही, उन्हें भूख और प्यास की भी अत्यन्त पीड़ा है । शान्त सुधारस विवेचन-१२५
SR No.022306
Book TitleShant Sudharas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnasenvijay
PublisherSwadhyay Sangh
Publication Year1989
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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