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________________ है और वैर भाव से क्रोध पैदा होता है। इस प्रकार एक बार किसी जीव को शत्रु/दुश्मन मान लेने से हमारी वैर की परम्परा अनेक भवों तक बढ़ जाती है। 'समराइच्च कहा' इस बात का जीता-जागता दृष्टान्त है। एक अग्निशर्मा के हृदय में गुणसेन राजा के प्रति द्वेष भाव पैदा हो गया। फलस्वरूप अग्निशर्मा के हृदय में रही वैर भाव की परम्परा नौ भवों तक चलती रही और नौ भवों तक उसने गुरगसेन राजा के जीव को मारने का प्रयत्न किया। इस वैर भावना का फल क्या हुआ ?.."एक मात्र अनन्त संसार की वृद्धि ही न ? अग्निशर्मा की आत्मा ने लाखों पूर्व वर्षों तक मासक्षमण के पारणे मासक्षमरण की उग्र तपस्या की थी, परन्तु गुणसेन राजा के प्रति द्वष/वैर भाव पैदा हो जाने से वह तप का सब फल हार गया। किसी कवि ने ठीक ही कहा है क्रोधे क्रोड पूरव तणु, संयम फल जाय । क्रोध सहित तप जे करे, ते तो लेखे न थाय । एक महात्मा मासक्षमण के पारणे मासक्षमण करते थे। एक बार बालमुनि के साथ वे गोचरी जा रहे थे, उनके पैर के नीचे एक मेंढ़क दबकर मर गया बालमुनि ने याद दिलाया-'आपके पैर के नीचे यह मेंढ़क दबकर मर गया है।' बालमुनि की बात सुनते ही तपस्वी मुनि का पारा प्रासमान शान्त सुधारस विवेचन-११८
SR No.022306
Book TitleShant Sudharas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnasenvijay
PublisherSwadhyay Sangh
Publication Year1989
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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