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अष्टपाहुडभाषा वचनिका ।
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संस्कृत-लब्ध्वा च मनुजत्त्वं सहितं तथा उत्तमेन गोत्रेण ।
लब्ध्वा च सम्यक्त्वं अक्षयसुखं च मोक्षं च ॥३४॥ अर्थ-उत्तमगोत्र सहित मनुष्यपणां प्रत्यक्ष पाय करि अर तहां सम्यक्त्व पाय करि अविनाशी सुखरूप केवलज्ञान पावें हैं, बहुरि तिस सुखसहित मोक्ष पावैं हैं ।
भावार्थ-यह सर्व सम्यक्त्वका माहात्म्य है ॥ ३४ ॥
आरौं प्रश्न उपजै हैं जो सम्यक्त्वके प्रभावतैं मोक्ष पावैं हैं सो तत्काल ही पावें हैं कि किछू अवस्थान भी हैं हैं ? ताके समाधानरूप गाथा कहैं हैं;गाथा-विहरदि जाव जिणिंदो सहसहसुलक्खणेहिं संजुत्तो।
चउतीसअइसयजुदो सा पडिमाथावरा भणिया ॥३५॥ संस्कृत-विहरति यावत् जिनेंद्रः सहस्त्राष्टसुलक्षणैः संयुक्तः ।
चतुस्त्रिंशदतिशययुतः सा प्रतिमा स्थावरा भणिता।३५ अर्थ- केवलज्ञान भये पीछे जिनेन्द्र भगवान जेसे इस लोकमैं आर्यखंडमैं विहार करें तेरौं तिनिकी सो प्रतिमा कहिये शरीर सहित प्रतिबिंब तिसकू 'थावर प्रतिमा' ऐसा नाम कहिये। सो कैसे हैं जिनेन्द्र एकहजार आठ लक्षणनि करि संयुक्त है। तहां श्रीवृक्ष कू आदि लेय एकसौ आठतो लक्षण होयहैं । बहुरि तिल मुसकू आदिलेय नवसै व्यंजन होयहैं । बहुरि चौतास अतिशयमैं दश तौ जन्मतें ही लिये उपजैहैं;-निस्वेदता १ निर्मलता २ श्वेतरुधिरता ३ समचतुरस्र सस्थान ४ वज्रवृषभ नाराच संहनन ५ सुरूपता ६ सुगंधता ७ सुलक्षणता ८ अतुलवीर्य ९ हितमित वचन १० ऐसैं दश । बहुरि घातिया कर्म क्षय भये दश होय ;- शतयोजन सुभिक्षता १ आकाशगमन २ प्राणि.