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________________ अष्टपाहुडमें शीलपाहुडकी भाषावचनिका । ४०५. अर्थ — जो शीलविना ज्ञानहीकरि विसोह कहिये विशुद्ध भाव पंडितां कह्यो होय तौ दश पूर्वका जाननेवाला जो रुद्र ताका भाव निर्मल क्यौं न भया, तातैं जानिये है भाव निर्मल शीलही होय है ॥ भावार्थ — कोरा ज्ञान तौ ज्ञेयकूं जनावही है तातैं मिथ्यात्व कषाय होय तब विपर्यय होय जाय तातैं मिथ्यात्वकषायका मिटनां सो ही शील है, ऐसैं शीलविना ज्ञानहीतैं मोक्ष सधै नांही, शीलविना मुनि होय तौऊ भ्रष्ट होय जाय है तातैं शीलकूं प्रधान जाननां ॥ ३१ ॥ आगैं है है जो नरक मैंभी शील होय जाय अर विषयनिकरि विरक्त होय तौ तहांतें निकसिकरि तीर्थंकरपद पावै है: गाथा — जाए विसयविरत्तो सो गमयदि णरयवेयणा पउरा । ता लेहदि अरुपयं भणियं जिणवडूमाणेण ॥ ३२ ॥ संस्कृत - यः विषयविरक्तः सः गमयति नरकवेदनाः प्रचुराः । तत् लभते अर्हत्पदं भणितं जिनवर्द्धमानेन ||३२|| अर्थ — जो विषयनितैं विरक्त है सो जीव नरकमैं बहुत वेदना है ताकूं भी गमावै है तहां भी अतिदुःखी न होय है तौ तहांतैं निकसि करि तीर्थंकर होय है यह जिनवर्द्धमान भगवाननें कया है ॥ भावार्थ - जिनसिद्धांत मैं ऐसें कया है जो तीसरी पृथ्वीतें निकसि तीर्थंकर होय है सो यह भी शीलहीका माहात्म्य है तहां सम्यक्त्व सहित होय विषयनितैं विरक्त भया भली भावना भावै तत्र नरक वेदनाभी अल्प होय अर तहांतैं निकसि अरहंतपद पाय मोक्ष पावै, ऐसा विषयनितैं विरक्त भाव सो ही शीलका माहात्म्य जानो, सिद्धांत मैं ऐसें कला है जो सम्यग्दष्टीकै ज्ञान अर वैराग्यकी शक्ति नियमकरि होय है सो वैराग्यशक्ति है सोही शीलका एकदेश है, ऐसैं जाननां ॥ ३२ ॥
SR No.022304
Book TitleAshtpahud
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychandra Chhavda
PublisherAnantkirti Granthmala Samiti
Publication Year
Total Pages460
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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