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________________ अष्टपाहुडमें मोक्षपाहुडकी भाषावचनिका । ३३१ mmmmmmmmmmmmm ___ भावार्थ-आत्माका रूप दर्शनज्ञानचारित्रमयी है सो याका रूप जैनगुरुनिके प्रसादकरि जान्या जाय है। अन्यमती अपनी बुद्धिकल्पित जैसे तैसैं मानि ध्यावें हैं तिनिकै यथार्थ सिद्धि नाहीं; तातें जैनमतकै अनुसार ध्यावनां ऐसा उपदेश है ॥६४ ॥ ___ आगैं कहैं हैं--आत्माका जाननां भावनां विषयनितें विरक्त होना ये उत्तरोत्तर दुःख” पाइये है;गाथा-दुक्खे णज्जइ अप्पा अप्पा पाऊण भावणा दुक्खं । भावियसहावपुरिसो विसयेसु विरजए दुक्खं ॥६५॥ संस्कृत-दुःखेन ज्ञायते आत्मा आत्मानं ज्ञात्वा भावना दुःखम् । भावितस्वभावपुरुषः विषयेषु विरज्यति दुःखम् ॥६५॥ अर्थ-प्रथम तौ आत्माकू जानिये है सो दुःखतें जानिये है, बहुरि आत्माकू जानिकरि भी भावना करना फेरि फेरि याहीका अनुभव करनां दुःखतें होय है, बहुरि कदाचित् भावनां भी कोई प्रकार होय तो भाया है जिनभावना जानैं ऐसा पुरुष विषयनिविर्षे विरक्त बडे दुःखतें होय है। भावार्थ-आत्माका जाननां भावनां विषयनितें विरक्त होनां उत्तरोत्तर यह योग मिलनां बहुत दुर्लभ है, यातें यह उपदेश है जो-योग मिले प्रमादी न होनां ॥६५॥ ___ आगैं कहैं हैं जैसे विषयनिमैं यह मनुष्य प्रवत्” है तेतैं आत्मज्ञान न. होय है;गाथा-ताम ण णज्जइ अप्पा विसएसु णरो पवट्टए जाम । विसए विरत्तचित्तो जोई जाणेइ अप्पाणं ॥६६॥ संस्कृत-तावन्न ज्ञायते आत्मा विषयेषु नरः प्रवर्तते यावत् । विषये विरक्तचितः योगी जानाति आत्मानम् ॥६६॥
SR No.022304
Book TitleAshtpahud
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychandra Chhavda
PublisherAnantkirti Granthmala Samiti
Publication Year
Total Pages460
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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