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________________ १९२ पंडित जयचंद्रजी छावड़ा विरचित मधुपिंगल मरि करि महाकालासुरनामा असुर देव भया तब सगरकू मंत्री सहित मारणेंका उपाय हेरता भया तब क्षीरकदंब ब्राह्मणका पुत्र पर्वत पापी याकू मिल्या तब पशुनिकी हिंसारूप यज्ञका सहायी होय कही, सगर राजाकू यज्ञका उपदेश करि यज्ञ कराय तेरा यज्ञका सहायी हूंगा तब पर्वत सगर पासि यज्ञ कराया पशु होमें, तिस पापः सगर सात 8 नरक गया अर कालासुर साहायी भया सो• यज्ञके काकू स्वर्ग गये दिखाये । ऐसें मधुपिंगल नामा मुनि निदानकरि महाकालसुर होय महापाप उपाा, तातै आचार्य कहै है मुनि होय तौऊ भाव विगडे सिद्धिकू न पावै याकी कथा पुराणनितें विस्तारतें जाननी ॥ ___ आरौं वशिष्ठ मुनिका उदाहरण कहै है;गाथा-अण्णं च वसिटमुणि पत्तो दुक्खं नियाणदोसेण । सो णत्थि वासठाणो जत्थ ण दुरुहुल्लिओजीवो॥४६॥ संस्कृत-अन्यश्च वसिष्ठमुनिः प्राप्तः दुखं निदानदोषेण । तन्नास्ति वासस्थानं यत्र न भ्रमितः जीव ! ॥४६॥ ___ अर्थ-बहुरि अन्य कहिये और एक वशिष्ठनामा मुनि निदानके दोषकरि दुःखकू प्राप्तभया या” ऐसा लोकमैं वासस्थान नाही जामैं यहु जीव जन्ममरणसहित भ्रमणकू प्राप्त नाही भया ॥ ___ भावार्थ-वशिष्ठमुनिकी कथा ऐसैं है;-गंगा अर गंधवती दोऊ नदीका जहां संग भया है तहां जठरकौशिकनामा तापसीकी पल्ली है तहां एक वशिष्ठ नामा तापसी पंचाग्नि तपै था तहां गुणभद्र वीरभद्र नामा दोय चारणमुनि आये तिनि वशिष्ट तापसकू कही जो तू अज्ञानतप करै है यामैं जीवनिकी हिंसा होय है, तब तापस प्रत्यक्ष हिंसा देखि अर विरक्त होय जैनदीक्षा लई भासोपवाससहित आतापनयोग स्थाप्या, तिस तपके माहात्म्यते सात व्यन्तरदेव आय कही, हमकं
SR No.022304
Book TitleAshtpahud
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychandra Chhavda
PublisherAnantkirti Granthmala Samiti
Publication Year
Total Pages460
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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