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________________ अष्टपाहुडमें भावपाहुडकी भाषावचनिका। १६९ छेदनां रांधनां आदिकरि दुःख पाये, विकलत्रयवि अन्यतैं रुकनां अल्प आयुर्ते मरनां इत्यादिकरि दुःख पाये, पंचेंद्रिय पशु पक्षी जलचर आदिविर्षे परस्पर घात तथा मनुष्यादिककार वेदना भूख तृषा रोकना बंधन देनां इत्यादिकरि दुःख पाये, ऐसे तिर्यंचगतिवि. असंख्यात अनंतकालपर्यन्त दुःख पाये ॥ १० ॥ __ आगें मनुष्यगतिके दुःखनिकू कहै है;गाथा--आगंतुक माणसियं सहजं सारीरियं च चत्तारि । दुक्खाई मणुयजम्मे पत्तोसि अणंतयं कालं ॥११॥ संस्कृत-आगंतुकं मानसिकं सहजं शारीरिकं च चत्वारि। दुःखानि मनुजजन्मनि प्राप्तोऽसि अनंतकं कालं ११ __ अर्थ-हे जीव । तैं मनुष्यगतिविौं अनंतकालपर्यन्त आगंतुक कहिये अकस्मात् वज्रपातादिक आयपडै ऐसा बहुरि मानसिक कहिये मनही विौं भया ऐसा विषयनिकी वांछा होय अर मिलै नांही ऐसा बहुरि सहज कहिये माता पितादिककरि सह नहीं उपज्या तथा राग द्वेषादिकतै वस्तुकू इष्ट आनष्ट दुःख होना बहुरि शारीरिक कहिये व्याधि रोगादिक तथा परकृत छेदना भेदन आदिकतै भये दुःख ये च्यार प्रकार अर चकारतें इनिकू आदिले अनेक प्रकार दुःख पाये ॥ ११ ॥ आ देवगतिविर्षे दुःखनिकू कहै है;गाथा-सुरणिलयेसु सुरच्छरविओयकाले य माणसं तिव्वं । संयत्तोसि महाजस दुःखं सुहभावणारहिओ ॥१२॥ संस्कृत-सुरनिलयेषु सुराप्सरावियोगकाले च मानसं तीव्रम्। संप्राप्तोऽसि महायशः! दुःखं शुभभावनारहितः॥१२ अर्थ-हे महाजस ! तें सुरनिलयेषु काहेये देवलोकविर्षे सुराप्सरा कहिये प्यारा देव तथा प्यारी अप्सराका वियोग कालविर्षे तिसके वियोग
SR No.022304
Book TitleAshtpahud
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychandra Chhavda
PublisherAnantkirti Granthmala Samiti
Publication Year
Total Pages460
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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