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पंडित जयचंद्रजी छावड़ा विरचित
इम परमारथ मुनिरूप सति अन्यभेष सब निंद्य हैं । व्यवहार धातुपाषाणमय आकृति इनिकी वंद्य है ॥१॥
दोहा। भयो वीर जिनबोध यहु, गौतमगणधर धारि । वरतायो:पंचमगुरू, नमूं तिनहिं मद छारि ॥२॥ इति श्रीकुन्दकुन्दस्वामि विरचित बोधपाहुडकी
जयपुरनिवासि पं० जयचन्द्रछावड़ाकृत देशभाषामयवचनिका समाप्त ॥४॥