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________________ अष्टपाहुडमें बोधपाहुडकी भाषावचनिका । १२७ भावार्थ-लोकमैं यह प्रसिद्ध है जो धर्म अर्थ काम मोक्ष ये च्यार पुरुषके प्रयोजन हैं इनिकै आर्थ पुरुष काढू वंदै पूजै है, बहुरि यह न्याय है जो जाकै जो वस्तु होय सो अन्यकू दे अणछती कहांतें ल्या तारौं ये च्यार पुरुषार्थ जिनदेवकै पाइये है, धर्म तो जिनकै दयारूप पाइये है ताकू साधि तीर्थकर भये तब धनकी अर संसारके भोगकी प्राप्ति भई लोक पूज्य भएं, बहुरि तीर्थकर परम पदवीमैं दीक्षा ले सर्व मोहते रहित होय परमार्थस्वरूप आत्मीक धर्मकू साधि मोक्षसुखकू पाया सो ऐसें तीर्थकर जिन हैं, सोही देव है लोक अज्ञानी जिनि• देव मानें हैं तिनिकै धर्म अर्थ काम मोक्ष नाही जाते केई हिंसक हैं केई विषयासक्त हैं मोही हैं तिनिकै धर्म काहेका ? बहुरि अर्थ कामकी जिनिकै वांछ। पाइये तिनिकै अर्थ काम काहेका ? बहुरि जन्म मरण” सहित हैं तिनिकै मोक्ष कैसैं ? ऐसैं देव सांचा जिनदेवही है येही भव्य जीवनिकै मनोरथ पूर्ण करै है, अन्य सर्व काल्पत देव हैं ॥ २५ ॥ ऐसैं देवका स्वरूप कह्या । __ आगें तीर्थका स्वरूप कहै हैं,गाथा-वयसम्मत्तविसुद्धे पंचेंदियसंजदे णिरावेक्खे । ___हाएउ मुणी तित्थे दिक्खासिक्खासुण्हाणेग ॥ २६ ।। संस्कृत-व्रतसम्यक्त्वविशुद्धे पंचेंद्रियसंयते निरपेक्षे। स्नातु मुनिः तीर्थे दीक्षाशिक्षासुस्नानेन ॥ २६ ॥ ___ अर्थ-व्रत सम्यक्त्वकरि विशुद्ध अर पांच इंद्रियनिकरि संयत कहिये संवरसहित बहुरि निरपेक्ष कहिये ख्याति लाभ पूजादिक इस लोकका फलकी तथा परलोकविौं स्वर्गादिकानके भोगनिकी अपेक्षात रहित ऐसा आत्म स्वरूप तीर्थ विषै दीक्षा शिक्षारूप स्नानकरि पवित्र होहू ॥
SR No.022304
Book TitleAshtpahud
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychandra Chhavda
PublisherAnantkirti Granthmala Samiti
Publication Year
Total Pages460
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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