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पंडित जयचंद्रजी छावड़ा विरचिता
__ अर्थ-जो पुरुष जीव अर अजीव इनिका भेद जानें सो सम्यग्ज्ञानी होय बहुरि रागादि दोष निकारि रहित होय ऐसा जिनशासन वि मोक्ष मार्ग है ॥ ___ भावार्थ-जो जीव अजीव पदार्थका स्वरूप भेदरूप जानि आप परका भेद जानैं सो सम्यग्ज्ञानी होय अर परद्रव्यनि रागद्वेष छोडनेंतें ज्ञानमैं थिरता भये निश्चय सम्यक्चारित्र होय सो ही जिनमतमैं मोक्षमार्गका स्वरूप कह्या है, अन्यमतीनिनैं अनेक प्रकार कल्पना करि कह्या है सो मोक्षमार्ग नांही है। ___ आगें ऐसा मोक्षमार्ग• जानि श्रद्धासहित यामैं प्रवत्र्ते है सो शीघ्र ही मोक्ष पावै है ऐसैं कहै है;गाथा-दंसणणाणचरित्तं तिण्णि वि जाणेह परमसद्धाए ।
जं जाणिऊण जोई अइरेण लहंति णिव्वाणं ॥४०॥ संस्कृत-दर्शनज्ञानचरित्रं त्रीण्यपि जानीहि परमश्रद्धया।
यत् ज्ञात्वा योगिनः अचिरेण लभंते निर्वाणम् ४० __ अर्थ—हे भव्य ! तू दर्शन ज्ञान चारित्र इनि तीननिकू परमश्रद्धाकरि जानि जिसकू जानिकार जोगी मुनि हैं सो थोरे ही कालमैं निर्वाणवू पा हैं॥ ___ भावार्थ-सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्रत्रयात्मक मोक्षमार्ग है ताके श्रद्धापूर्वक जाननेका उपदेश है जाते या• जानें मुनिनिकै मोक्षकी प्राप्ति होय है॥४०॥ ___ आगैं कहे है जो ऐसे निश्चयचारित्ररूप ज्ञानका स्वरूप कह्या इसकू जो पावै है सो शिवरूप मंदिरके वसनेवाले होय है;गाथा-पाऊण णाणसलिलं णिम्मलसुविसुद्धभाणसंजुत्ता ।
हुंति सिवालयवासी तिहुवणचूडामणी सिद्धा ॥४१॥