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________________ अष्टपाहुडमें चारित्रपाहुडकी भाषावचनिका। ९९ ___ आगैं कहै है संयमचरण चारित्रवि ऐसें तौ श्रावक धर्म कह्या अब यतिधर्मकू कहै हैगाथा-एवं सावयधम्म संजमचरणं उदेसियं सयलं । सुद्धं संजमचरणं जइधम्मं णिकलं वोच्छे ॥ २७ ॥ संस्कृत-एवं श्रावकधर्म संयमचरणं उपदेशितं सकलम् । शुद्धं संयमचरणं यतिधर्म निष्कलं वक्ष्ये ॥ २७॥ अर्थ-एवं कहिये या प्रकार श्रावक धर्म स्वरूप संयमचरण तौ कह्या, कैसा है यह-सकल कहिये कलासहित है, एक देशकू कला कहिये; अब यतिधर्मका धर्मस्वरूप संयमचरण है ताहि कहूंगा ऐसैं आचार्य प्रतिज्ञा करी है, कैसा है यतिधर्म-शुद्ध है निर्दोष है जामैं पापाचरणका लेश नांहीं है, बहुरि कैसा है, निकल कहिये कलातें निःक्रांत है संपूर्ण है श्रावक धर्मकी ज्यों एकदेश नांही है ॥ २७ ॥ आणु यति धर्मकी सामग्री कहै है;गाथा-पंचेंदियसंवरणं पंच वया पंचविंसकिरियासु । पंच समिदि तय गुत्ती संयमचरणंणिरायारं ॥२८॥ संस्कृत-पंचेंद्रियसंवरणं पंच व्रताः पंचविंशतिक्रियासु । पंच समितयः तिस्रः गुप्तयः संयमचरणं निरागारम्॥२८ ___ अर्थ--पंच इंद्रियनिका संवर, पांच व्रत ते पच्चीस क्रिया के सद्भाव होतें होय, बहुरि पांच समिति, तीन गुप्ति ऐसैं निरागार संयमचरण चारित्र होय है ॥ २८ ॥ आगें पांच इंद्रियके संवरणका स्वरूप कहै है;-- गाथा-अमणुण्णे य मणुण्णे सजीवदव्वे अजीवदव्वे य । ण करेइ रायदोसे पंचेंदियसंवरो भणिओ॥ २९ ॥
SR No.022304
Book TitleAshtpahud
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychandra Chhavda
PublisherAnantkirti Granthmala Samiti
Publication Year
Total Pages460
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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