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________________ श्री संवेगरंगशाला निन्दा और सुकृत अनुमोदना आदि आराधना विधिपूर्वक आराधना करूँगा, परन्तु अभी यहाँ पर प्रासुक-शुद्ध भूमि नहीं है, संथारे की सामग्री नहीं है, वैसी ही निर्यामक भी नहीं है, अहा हा ! अकाल में आकस्मिक मेरी यह कैसी अवस्था हो गई है ? अथवा ऐसी अवस्था में मुझे अब लम्बा विचार करने से क्या लाभ है ? हाथी की पीठ पर ही मेरा संथारा हो, मेरी ही आत्मा मेरा निर्यायक बने । ऐसा चिन्तन कर उसी समय उस मधुराजा ने द्रव्य, भाव शस्त्रों का त्याग किया और उसी क्षण में आत्मा को परम संवेग में स्थिर कर दिया, मुक्ति का एक लक्ष्य बना दिया, हाथी, घोड़े, रथ और मनुष्यों के समूह को, स्त्रियों को, विविध भण्डार, पर्वत नगर और गाँवों सहित सारी पृथ्वी को त्रिविध-त्रिविध रूप में त्याग किया, अट्ठारह पाप स्थानकों के सर्व समूह और सर्व द्रव्य क्षेत्र आदि के राग को भी त्याग किया। उसके बाद धर्म ध्यान में तन्मय और रौद्र-आर्त ध्यान का त्यागी बनकर वह बुद्धिमान राजा चिरकाल के दुष्ट आचरणों की निन्दा करके सर्व इन्द्रियों के विकारों को रोक कर अनशन विधि को स्वीकार कर सभी प्राणि-मात्र से क्षमा-याचना करते हुये, सुख दुःख आदि द्वन्द प्रति मध्यस्थ भाव रखने वाला वह राजा भक्तिपूर्वक दोनों हाथ जोड़कर कहने लगा कि-भाव शत्रुओं का विनाश करने वाले सर्वज्ञ श्री अरिहंत देवों को मेरा नमस्कार हो, कर्म के समूह से मुक्त सर्व सिद्धों को मेरा नमस्कार हो, नमस्कार हो ! धर्म के पाँच आचारों में रक्त आचार्य महाराज को मैं नमस्कार करता हूँ, सूत्र के प्रवर्तक श्री उपाध्यायों को नमन करता हूँ और क्षमादि गुणों से युक्त सर्व साधुओं को भावपूर्वक नमस्कार करता हूँ। इस तरह पंचपरमेष्ठियों को नमस्कार करते वह मर गया और शुभप्राणिधान के प्रभाव से वहाँ से सात सागरोपम के आयुष्य वाला तीसरे सनत्कुमार देवलोक में देदीप्यमान शरीर वाला देव हुआ। इस मधुराजा का वर्णन संक्षेप से कहा, अब सुकौशल महामुनि का वर्णन कहते हैं। सुकौशल मुनि की कथा साकेत नामक महान् नगर में कीर्तिधर नाम से राजा राज्य करता था उसे सहदेवी नाम की रानी और उसका सुकौशल नामक पुत्र था। अन्य किसी दिन वैराग्य प्राप्त कर राजा ने सुकौशल का राज्याभिषेक करके सद्गुरु के पास में संयम लिया, ज्ञान क्रिया रूप ग्रहण और आसेपन दोनों प्रकार की शिक्षा को सम्यग् उपयोग पूर्वक आराधना करते वह गाँव, नगर आदि में ममता रहित विचरने लगे। एक समय उन्होंने साकेतपुर में भिक्षार्थ प्रवेश
SR No.022301
Book TitleSamveg Rangshala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmvijay
PublisherNIrgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year1986
Total Pages648
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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