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________________ श्री संवेगरंगशाला जीवन से कुछ समय व्यतीत करके वह महात्मा राज्य लक्ष्मी, नगर धन, कंचन, रत्नों के समूह, माता पिता और गाढ़ स्नेह से बन्धे हुए बन्धु वर्ग को भी वस्त्र पर लगे तृण के समान छोड़कर उपशम और इन्द्रियों के दमन करने में मुख्य चौदह पूर्व रूपी महा श्रुतरत्नों का निधान धर्मयश नामक आचार्य के पास में देवों समूह द्वारा महोत्वपूर्वक कठोर कर्मों रूपी पर्वत को तोड़ने में वज्र समान दीक्षा की सम्यक प्रकार से स्वीकार करेगा। फिर सूत्र अर्थ के विस्तार रूप महा उछलते तरंगों वाला और अतिशय रूपी रत्नों से व्याप्त आगम समुद्र में चिरकाल स्नान करते छठ्ठ, अट्ठम आदि दुष्कर उग्र तप चारित्र और भावनाओं से प्रतिदिन आत्मा शशीर और कषाय की दोनों प्रकार की तीव्र संलेखना करते, कायर मनुष्य के चित्त को चमत्कार करे इस प्रकार के वीरासन आदि आसनों से प्रतिक्षण उत्कृष्ट संलीनता का अभ्यास करते तथा संसार से डरा हुआ भव्य जीवों को करूंणा से उपदेश देने रूप रस्सी द्वारा मिथ्यात्व रूपी अंध कुएं में से उद्धार करते सूर्य के समान महा तेज वाले, चन्द्र समान सौम्य, पृथ्वी सदृश सर्व सहन करते, सिंह समान किसी से पराभूत नहीं होने वाले, तलवार और पशु के शृंग के समान अकेला, वायु के समान अस्खलित, शंख के समान निरंजन राग से रहित पर्वत के समान स्थिर, भारंड पक्षी के समान अप्रमत्त और क्षीर समुद्र के समान गम्भीर इस तरह लोकोत्तर गुणों के समूह से शोभित पृथ्वी ऊपर विचरते अन्त समय में संलेखना क्रिया को विशेष प्रकार से करेगा। फिर आत्मा की संलेखना करता वह महाभाग चारों आहार का त्याग करके एक महीने का पाद पोप गमन अनशन में रहेगा वहाँ शुक्ल ध्यान रूपी अग्नि से शीघ्र सम्पूर्ण कर्मवन को जलाकर जरा-मरण से रहित, इष्ट वियोग, अनिष्ट योग और दरिद्रता से मुक्त, एकान्तिक, आत्यंतिक व्याबाधारहित और श्रेष्ठ सुख से मधुर तथा पुनः संसार में आने का अभाव वाला अचल रजरहित, रोग रहित, क्षय रहित शाश्वत, अशुभ-शुभ सर्व कर्मों को नाश करने से होने वाला भयमुक्त अनन्त, शत्रु रहित असाधारण निर्वाणपद को एक ही समय में प्राप्त करेगा। और भक्ति वश प्रगट हुए रोमांच द्वारा व्याप्त देह वाले एकाग्र मन वाले देव उसका निर्वाण महोत्सव को करेगा। ___ इस प्रकार हे स्थविरों ! महसेन महामुनि को उत्तरोत्तर श्रेष्ठ फल वाली, उत्कृष्ट कल्याण परम्परा को सम्यक् प्रकार से सुनकर, सर्वथा प्रमाद रहित, माया, मद, काम और मान का नाश करने वाले, संसार वास
SR No.022301
Book TitleSamveg Rangshala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmvijay
PublisherNIrgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year1986
Total Pages648
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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