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श्री संवेगरंगशाला
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वाला देवादि द्वारा भी निर्ग्रन्थ प्रवचन से अर्थात् जिन शासन से क्षोभ प्राप्त नहीं करते और सम्यक् दर्शन आदि मोक्ष साधक गुणों में अति दृढ़ता को तू सदा त्रिविध-त्रिविध सम्यक् प्रकार से अनुमोदन कर । अन्य भी जो आसन्न भावी, भद्रिक परिणामी अल्प संसारी, मोक्ष की इच्छा वाले, हृदय से कल्याणकारी वृत्ति वाले तथा लघुकर्मी देव, दानव, मनुष्य अथवा तिर्यंच इन सर्व जीवों को भी सन्मार्गानुगामिता, अर्थात् मार्गानुसारी जीवन का तू सम्यक् अनुमोदन कर । इस तरह हे भद्र ! ललाट पर दोनों हस्त अंजलि जोड़कर इस प्रकार श्री अरिहंत आदि के सुकृत्यों की प्रतिक्षण सम्यक् अनुमोदन करते तुझे उन गुणों को शिथिल नहीं करना किन्तु रक्षण करना । बहुत काल से भी एकत्रित किए कर्ममल को भी करना और इसी तरह कर्म का घात करते तू हे सुन्दर मुनि ! तेरी सम्यक् आराधना होगी । इस तरह से सुकृत्य अनुमोदन द्वार को कहा । अब भावना पटल - समूह नामक चौदहवाँ अन्तर द्वार को कहता हूँ ।
चौदहवाँ भावना पटल द्वार : - जैसे प्रायः सर्व रसों का मुख्य नमक मिश्रण है, अथवा जैसे पारे के रस संयोग से लोहे का सुवर्ण बनता है, वैसे धर्म अंग जो दानादि हैं वे भी भावना बिना वांछित फलदायक वाला नहीं होता है इसलिए हे क्षपक मुनि ! उस भावना में उद्यम कर । जैसे कि - दान बहुत दिया, ब्रह्मचर्य का भी चिरकाल पालन किया, और तप भी बहुत किया, परन्तु भावना बिना वह कोई भी सफल नहीं है भाव शून्य दान में अभिनव सेठ और भाव रहित शील तथा तप में कंडरिक का दृष्टान्त भूत है । बलदेव का पारणा कराने की भावना वाले हिरन ने कौन सा दान दिया था, तथापि भावना की श्रेष्ठता से उसने दान करने वाले के समान फल प्राप्त किया था । अथवा तो जीर्ण सेठ का दृष्टान्त रूप है कि केवल दान देने की भावना से भी दान बिना भी महा पुण्य समूह को प्राप्त किया था । शील और तप के अभाव में भी स्वभाव से ही बढ़ते तीव्र संवेग से शील तप केवल परिणाम से परिणत हुआ था फिर भी मरुदेवा माता सिद्ध हुए तथा हे क्षपक मुनि ! शील तप के परिणाम वाले अल्पकाल तप शील वाले भगवन्त अवन्ति सुकार शुभ भावना रूप गुणों से महद्धिक देव हुआ । और दान धर्म में अवश्य धन के अस्तित्व की अपेक्षा रखता है तथा यथोक्त शील और तप भी विशिष्ट संघयण की अपेक्षा वाला है । परन्तु यह भावना तो निश्चय अन्य किसी भी वस्तु की अपेक्षा नहीं रखता है, वह शुभ चित्त में ही प्रगट होता है । इसलिए उसमें ही प्रयत्न करना चाहिये ।